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समय बाहर ले आना चाहिये। किसी वैयावच्चकर साधु को चाहिये कि वह मृतक को उठाकर एकान्त में शुद्ध भूमि पर परिष्ठापित कर देवे । यदि एक से मृतक न उठे तो अनेक मुनि मिलकर उठा सकते हैं । यह विधि निष्कारण रूप में कही गई है। कारण विशेष होने पर तो कितने भी समय तक मृतक को रखा जा सकता है। वहां जागरण, बन्धन, छेदन आदि विधि शास्त्र प्रमाण से करना चाहिये ।
मृतक को किन-किन कारणों से रखा जा सकता है, ? इस सम्बन्ध में कहा है कि
"हिम-तेण-साक्यभयापिहिता दारा महाणिणादो वा। ठवणा णियगा व तहिं पायरिय महा तबस्सी वा २॥
- रात्रि में असह्य हिमपात होता हो, चोर तथा हिंसक जीवों का भय हो, बाहर निकलने जैसी स्थिति न हो, नगर द्वार उस समय बन्द हों, महान् निनाद ( भयंकर ) गर्जना होती हो, महाजनों को ज्ञात हो गया हो, तो उस मृतक को ग्राम या नगर में ही रखना चाहिये । इसी प्रकार ग्रामादिक में रात्रि में मृतक को निकालने की व्यवस्था न हो अथवा उस ग्राम या नगर में मृतक के सम्बन्धी या ज्ञातिजन हों और कहें कि हमसे पूछे बिना मृतक को नहीं निकालना, या वह उस नगर में अतीव प्रसिद्ध प्राचार्य हो, महातपस्वी हो, चिरकाल से अनशन करने वाला हो, मास क्षमण किया हो, इन कारणों से रात्रि में मृतक को वहीं रखा जा सकता है। इसी प्रकार मृतक को आच्छादित करने के लिये उज्ज्वल वस्त्र न हों अथवा राजादि नगर में प्रवेश करते हो या निकलते हो तो दिन में भी न निकालो द्वार बन्द होने की
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