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प्रश्न १०५ - विहार आदि करने की इच्छा वाले प्राचार्यादि को चन्द्र बल-तारा बल आदि निमित्त देखना चाहिये या नहीं ?
उत्तर- विहारादि करने की इच्छा वाले प्राचार्यादि को प्रायः करके चन्द्र बल-ताराबल देखना चाहिये । बृहकल्पवृत्ति के द्वितीय खण्ड में कहा है कि -प्रणुकुलेत्यादि" आचार्यों को जब चन्द्र बल-ताराबल अनुकूल हो तब बिहार ( प्रस्थान ) करना चाहिये । उपाश्रय से निकलने के बाद जबतक सार्थ का साथ न हो तब तक स्वयं ही शकुन ग्रहण करे, सार्थका साथ होने पर उसके शकुन से प्रमाण करना चाहिये ।
इस गणिविज्जापइन्नग सूत्र में भी शुभ निमित्तादि लेना कहा है ।
प्रश्न १०६ - जिनकल्प शब्द में जिन पद से तीर्थकर एवं सामान्य केवली लेना चाहिये या अन्य कोई । और जिनकल्पी साधु उसी भव में मोक्ष जाते हैं या नहीं ? यदि नहीं जाते हैं तो किस कारण से ?
उत्तर -- यहां जिन शब्द से तीर्थंकर एवं सामान्य केवली नही लेना क्योंकि ये स्थविरकल्पिक एवं जिनकल्पिक से भिन्न होने के कारण कल्पातीत कहे जाते हैं किन्तु गच्छ में से निकले हुए साधु विशेष लेना चाहिये । जैसा कि प्रवचनसारोद्धार की टीका के ६३ वें द्वार में कहा है कि-
"जिनाः गच्छनिर्गतसाधु विशेषाः तेषां कल्पः समाचार रतेन चरन्तीति जिनकल्पिका इत्यादि ।
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