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अपवाद मार्ग से शेषकाल में भी पाट पाटलादि के सेवन करने के सम्बन्ध में प्रागम में कहा है कि
"जह कारणे तणाई उउबद्धम्मि य हवन्ति गहियाई। तह फलगाणि वि गिराहइ चिक्खिल्लाईहि कज्जेहिं॥" जिस प्रकार देशादि लक्षण कारण उपस्थित होने पर ऋतुबद्धकाल में घास आदि ग्रहण किया जाता है, वैसे ही शेषकाल में कादव आदि (जीवोत्पत्ति, वनस्पति) कारण उपस्थित होने पर पाट पाटलादि ग्रहण किये जा सकते हैं। प्रश्न १०२--मार्ग में वृक्षादि के नीचे विश्राम करने की इच्छा
वाले साधु वहाँ किसकी आज्ञा से विश्राम करे ? उत्तर--- "अणु जाणह जसुग्गहो” ( जिसका अवग्रह है वह
आज्ञा देवे ! ) 'ऐसा कह कर साधु वृक्षादि से आज्ञा लेकर वहां विश्राम कर सकता है । आवश्यक सूत्र की टीका में इस प्रकार कहा है, जिसका संक्षेप में पाठ
इस प्रकार है। "साधूनाम् इयं समाचारी सर्वत्रैव अध्वादिषु वृक्षाद्यपि अनुज्ञाप्प स्थातव्यम् , तृतीयव्रत रक्षणार्थम्, एवं भिक्षाटनादावपि व्याघात सम्भवे क्वचित् स्थातुकामेन स्वामिनं तद् अभावे तदवग्रह देवतां वा अनुज्ञाप्य स्थेयम् ।।" ____-साधुओं की यह समाचारी है कि--सर्वत्र मार्गादि में तृतीय व्रत की रक्षा के लिये वृक्षादि की आज्ञा लेकर ठहरना । इसी प्रकार गोचरी आदि लेने जाते समय यदि मार्ग में कोई व्याघात हो जाय तो किसी भी स्थान पर खड़े रहने के लिये
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