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"कयाइ मोइयो संतो पुणोवि घेपिज्जा किं मोएयव्वो न मोएअव्यो" उच्यते - सयं पि वारा मोएयच्चो मज्जाया पडिवन्नो ।"
शंका - चारित्र की मर्यादा में रहे हुए साधको एक बार छुड़ाने पर भी यदि फिर वह पकड़ा जाय तो छड़ाना कि नहीं ?
समाधान
चाहिये ।
मर्यादा में रहे हुए साधु को सौ बार छुड़ाना
चैत्यादि के नवीन चाँदी सोना एवं अन्य द्रव्यादि के उपार्जन का काम गृहस्थ का है, साधु का नहीं । यदि कोई साधु उपार्जन करता है तो ज्ञान-दर्शन-चरित्र की शुद्धि नहीं होती है | पंचकल्प चूर्णि में इसका निषेध है ।
इसी प्रकार चैत्य सम्बन्धी क्षेत्र स्वर्ण रजत पात्रादि का कोई वेषधारी साधु राजबल से अपहरण करे अथवा राजा के सुभट हरण करें तो तप-नियम में सम्यक् प्रकार से प्रवृत भी साधु यदि न छुड़ावे अथवा छुड़ाने का उद्यम न करे तो उसके ज्ञानादिक की शुद्धि नहीं होती और प्राशातना होती है ।
किस प्रकार मुक्त करावे ? इसके लिये कहा है कि ऐसा प्रसंग उपस्थित होने पर प्रथम राजादि को मधुरवचनों से राजा आदि को शिक्षा देवे, समभावे, अथवा धर्म का उपदेश देवे । शिक्षा एवं उपदेशों से न माने तो प्रासाद कम्पन आदि से भय एवं पीड़ा आदि उत्पन्न करने वाली शिक्षा देवे । श्री पंचकल्प भाष्य चूर्णि में "चेश्य निमित्तं" आदि पाठ इसी प्राशय को व्यक्त करता है ।
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