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से शयन करना चाहिये अन्यथा अनेक दोषों की सम्भावना रहती है । तथा मूषकादि निवारणार्थ पात्रों से २० अंगुल दूर शयन करना उचित है ।
इस विषय का विस्तार अोधनियुक्ति में हैं। प्रश्न ६७-मार्ग में चलते हुए साधुओं को मार्ग किससे पूछना
चाहिये ? उत्तर-- साधुओं को चाहिये कि वे मार्ग में चलते हुए हो तो
बाल-वृद्ध स्त्री एवं नपुंसक से मार्ग न पूछे, किन्तु मध्यम वयस्क दो पुरुषों से पूछे, वे दो पुरुष भी जहां तक हो सार्मिक एवं गृहस्थ होने चाहिये। इनके अभाव में अन्यधर्मावलम्बी पुरुषों से धर्म-लाभ पूर्वक प्रेम से पूछे । वृद्धादि से पूछने पर जो दोष हैं, वे इस प्रकार हैं-- वृद्ध से पूछने पर वह मार्ग नहीं जानता है, बालक से पूछने पर वह हास्यादि प्रपंच करता है अथवा मार्ग नहीं जानता है, नपुसक एवं स्त्री से पूछने पर दूसरों को शंका होती है । ऐसी स्थिति में किस प्रकार पूछना चाहिये। इस
सम्बन्ध में कहा है कि-- पासहिओ पुच्छिज्जा बंदमाणं अबंदमारणं वा । अणुवइउण व पुच्छेज्जा तुहिक्क नेत्र पुच्छिज्जा ।।
-पास में रहा हुआ कोई मनुष्य वन्दन करता हो तो उससे पूछे अथवा वन्दन न करके पास से होता हुआ कोई जाता हो तो उसके पीछे कुछ चलकर फिर पूछना चाहिये । यदि पूछने पर भी वह न बोलकर चुपचाप चला जावे तो नहीं पूछना चाहिए।
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