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धोइज्ज" इस पाठ के द्वारा जानना चाहिये, जो जिनकल्पी मुनियों की अपेक्षा से दिया गया है ।
प्रश्न ६४ :- यदि वस्त्रों में यूका (जू ) उत्पन्न हो जाय तो वस्त्र प्रक्षालन के समय कौनसी विधि करनी चाहिये ?
उत्तर -- वस्त्रों में यदि जूं उत्पन्न हो जाय तो वस्त्र के अन्दर हाथ रखकर यतनापूर्वक दूसरे वस्त्र पर जूं को चढ़ाकर पुनः वस्त्र धोना चाहिये । इसी आशय को व्यक्त करते हुए श्री प्रध नियुक्ति सूत्र में इस प्रकार कहा है कि
"जया संकामणा" यतनया वस्त्रान्तरित हस्तेन अन्यस्मिन् वस्त्र षट्पदी: संक्रामयन्ति ततो धावन्ति । " प्रश्न ६५: - स्थण्डिल जाने के लिये कितने साधु सम्मिलित रूप में ( साथ साथ ) जावें एवं कितना जल ले जावे ?
उत्तर - श्री प्रोघ नियुक्ति में इस सम्बन्ध यह में कहा है कि"दो दो गच्छन्ति " - दो दो साधु साथ साथ जावे, अकेला न जावे । दो साधु जब स्थण्डिल जावें तो अपने साथ तीन साधुओं के काम में आवे उतना जल ले जावें । दोनों को समश्रेणी में कभी नहीं बैठना चाहिये । इस प्रकरण को और अधिक विस्तार से जानने के लिये ओघनियुक्ति एवं वृहत्कल्प की टीका देखनी चाहिये ।
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प्रश्न ६६ - साधु शयन करते समय परस्पर कितना अन्तर रखे एवं पात्रों से कितनी दूर शयन करें ?
उत्तर- उत्सर्ग मार्ग से साधुत्रों को परस्पर दो हाथ के अन्तर
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