________________
( ११५ ) इसी प्रकार यह भी कहा है कि
"कुलगणसंघचेइय विणासाईसु कारणेसु नाणदरिसण चरित्ताइयं पडि सेवमाणो सुद्धो जयणाए ।"
- कुल, गण, संघ एवं जिन मन्दिर के विनाश के कारण उपस्थित हों तो ज्ञान, दर्शन-चारित्र में यतनापूर्वक अतिचार का सेवन करे तो भी शुद्ध ही गिना जाता है। प्रश्न ६२:-जिन मन्दिर में जिन प्रतिमा के ऊपर भ्रमरी का
घर आदि हो तो उस प्रकार के उपयोगी श्रावक के अभाव में सुविहित शुद्ध संयमधारी साधु स्वयं उसको
दूर कर सकते हैं या नहीं ? उत्तर:- इस कार्य में अल्पदोष होने से साधु को स्वयं दूर कर
देना चाहिये। यदि न करे तो गुरु प्रायश्चित प्राता है । इसके सम्बन्ध में बृहत्कल्प भाष्य में कहा है कि
"लूया कोलिग जालिग कोत्थलहारी अ उवरिगेहे अ साडितम साडि ते लहुगा गुरुगा य भत्तीए ।"
-कोई भी महात्मा किसी भी ग्राम में जिन प्रासाद को देखकर चैत्यको वन्दन करने जावे और वहां यदि मन्दिर में स्वच्छता न हो एवं भगवान की प्रतिमा के रूपर मकड़ी का जाला, भंवरी का घर आदि होवे और उसे देखकर उपेक्षा करे अर्थात् स्वयं उनको दूर न करे तो गुरु प्रायश्चित को प्राप्त करता है, दूर करने पर लघु प्रायश्चित पाता है, यही नियम जिन प्रतिमा के ऊपर पाशातना के कारण भूत वृक्षादि के प्राश्रित होने पर भी जानना चाहिये।
Aho! Shrutgyanam