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पुनः इस प्रकार का प्रकार्य करोगे तो मैं तुम्हारी सहायता नहीं करूंगा अर्थात् तुमको पीड़ा से मुक्त नहीं कराऊँगा । इसी प्रकार मर्यांदा में रहा हुआ साधु यदि एक बार मुक्त कराने पर भी फिर पकड़ा जाय तो उसको सौ बार भी छुड़ाने का प्रयत्न करना चाहिये।
श्री पंचकल्प चूर्णी में यही बात कही है, जो इस प्रकार है :
___ "समत्थेण साहुणा लिंगत्थाणं वि साहज्ज कीरइ "तत्र" चारित्र स्थितस्य सर्वप्रयत्नेन कर्तव्यम्, यः पुनश्चारित्र हीनस्तस्य सकृत कार्यम् ।" ___ --समर्थ साधु वेषधारी साधु की भी सहायता करे । उनमें जो चारित्र्य में रहे हुए हों उनकी सब प्रकार के प्रयत्नों से सहायता करे एवं जो चारित्र हीन हो, उसकी एक बार सहायता करे।
तस्स पुणो काउं उबालब्भइ जई पुणो एरिसं करेसि तो मे ण मोमो, लिंग अणुमुयंतस्स जीविया पोढस्स अपुट्टधम्मस्स वि कीरइ जहेत्र संविग्गस्स ।"
-चारित्र हीन की एकबार सहायता करके उपालम्भ रूप में यह कहे कि यदि ऐसा फिर करोगे तो मैं तुम्हें नहीं छुड़ाऊँगा ! वेष की अनुमोदना करने वाले अपुष्टधर्मी चारित्रहीन की भी संविग्न साधु के समान सहायता करे।
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