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( ११२ ) अन्यच्च-'संभोइनो संभोइण्ण सम निक्कारणे वादं करेइ पायच्छित्त विसंभोगो वा, एवं पासस्थाईहिं वि कारणे पुण जइ न करेइ पायाच्छित्त विसंभोगो वा, संजईहिं संभोइयो संभोइयाहिं कारणे निक्कारणे वा वायं करेइ पायच्छित्त विसंभोगो वा, एवमेव "संजईण वा ।"
-एक समाचारी वाला साधु अपने समाचारी वाले साधु के साथ बिना कारण वाद करे तो विसंभोग नामक प्रायश्चित आता है। इसी प्रकार कारण उपस्थित होने पर भी पार्वस्थादि के साथ यदि वाद न करे तो विसंभोग नामक प्रायश्चित प्राता है । सांभोगिक साधु सांभोगिक साध्वियों के साथ कारण या बिना कारण वाद करे तो भो विसंभोगक नामक प्रायश्चित आता है। यही नियम साध्वियों के लिये भी जानना चाहिये। प्रश्न ६१-शक्तिशाली समर्थ संयमी साधु जिस प्रकार दुष्ट राजा
आदि से पीडित शुद्ध साधुनों की सहायता करते हैं, उसी प्रकार चारित्रहीन वेषधारी साधुओं की रक्षा करते हैं कि नहीं। इसी प्रकार देव द्रव्य का हरण करने वाले चैत्यादिका नाश करने वाले दुष्ट राजाओं को शिक्षा देते हैं कि नहीं ? तथा चैत्यनिमित्त नवीन चांदी-सोना आदि द्रव्य उपाजित करते हैं
या नहीं। उत्तर- चरित्र निष्ठ शुद्ध साधु की सब प्रकार के प्रयत्नों से
सहायता करनी चाहिये एवं चारित्रहीन साधु की एकवार सहायता कर यह उपालम्भ देना कि यदि
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