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के प्रवेश करने के साथ ही उपाश्रय के खुले हुए द्वार देखकर कोई मी गृहस्थ वहाँ आकर शयन कर सकता है अथवा विश्राम ले सकता है। इन कारणों से उपाश्रय के द्वार बन्द किये जाते हैं। प्रश्न ८५:-अधिक दिनों तक उल्लंघन करने योग्य मार्ग में
साधु अपने साथ कुछ भी पाथेय (मार्ग के लिए भोज्य
पदार्थ) रखते हैं कि नहीं ? उत्तर:- उत्सर्गवश नहीं रखते हैं, किन्तु अपवाद से तो रख
सकते हैं। अन्यथा प्रायश्चित पाता है। इस संबंध में बृहत्कल्प भाष्य में कहा है कि
''अग्गहणे कप्परस उ इत्यादि छिन्ने आछिन्ने वा पथि यदि अध्वकल्पं न गृह णन्ति तदा चतुगुरवः ।"
अधिक दिनों तक उल्लंघन करने योग्य चाल अथवा जिसमें कभी कोई नहीं चला हो ऐसे मार्ग में अपवाद से मार्ग में कल्पने योग्य पाथेय न ग्रहण करे तो चतुर्गुरु ( उपवास ) का प्रायश्चित पाता है। प्रश्न ८६ :--गोचरी आदि के लिये गये हुए साधु गृहस्थ के घर
का द्वार खोलें या नहीं। । उत्तर-उत्सर्ग से तो साधु गृहस्थ के घर का द्वार नहीं खोले
परन्तु कारणवश खोलना अपवाद मार्ग है । इसी प्राशय को व्यक्त करते हुए श्री आचारांग सूत्रवृत्ति के द्वितीय स्कन्ध के अन्तर्गत प्रथम अध्ययन के पञ्चम उद्देश में इस प्रकार कहा है :
Aho! Shrutgyanam