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हीन होता है । शेष राजाओं के तथा देशवासियों के रूप षट्स्थान गत होते हैं ।
प्रश्न ६१: - देवों का भवधारणीय शरीर उत्पत्ति समय में वस्त्रालंकार से रहित स्वाभाविक अनुपम रूप युक्त होता हैं, किन्तु उसके पश्चात् जब वे यथावसर वस्त्रालंकार धारण करते हैं तब उनका उत्तर वैक्रिय शरीर भी वैसे ही वस्त्रालंकार रहित होता है अथवा वस्त्रालंकार युक्त ?
उत्तर-
देव उत्तर वैक्रिय शरीर को वस्त्रालंकार युक्त ही बनाते हैं किन्तु इसके पश्चात् वस्त्रादि धारण नहीं करते । जैसा कि जीवाभिगम सूत्र में कहा है यथा:"सोहम्मीसाग देवा केरिसया विभूसार पण्णत्ता गोयमा दुविहा पाता तं वेउच्चिय शरीराय प्रवेउब्विय शरीराय, तत्थणं जे ते वेउव्जिय सरीरा ते हार विराइयवत्था जाव दस दिसा उज्जोए मारणा इत्यादि तत्थणं जे ते अवेउब्विय सरीरा तेणं श्राभरण बसण रहिया पगतित्था विभूसाए परणता ।। "
-- गौतम ने भगवान से प्रश्न किया कि - हे भगवन् ! सौधर्म ईशान देव लोक के देव केसी शौभा से युक्त होते हैं, हे गौतम ! देव दो प्रकार के होते हैं - १ वैक्रिय शरीर धारी अर्थात् उत्तर वैक्रिय शरीर वाले देव एवं दूसरे अवैक्रिय शरीरधारी अर्थात् भवधारणीय शरीर वाले । इनमें जो उत्तर वैक्रिय शरीर वाले होते हैं वे हार से विभूषित वक्षः स्थल वाले दशों दिशाओं को शित करते है एवं जो अवैक्रिय शरीर धारी अर्थात् भव
प्रका
Aho ! Shrutgyanam