________________
(१० )
प्रश्न ७५:-आहारक लब्धिधर मुनि एवं विद्याधर आदि अपनी
लब्धि से उत्कृष्टतापूर्वक तिर्यक् लोक में कितने दूर
जाते हैं ? उत्तर- आहारक लधिधर उत्कृष्ट महाविदेह तक, विद्या
चारण मुनि एवं विद्याधर नन्दीश्वर द्वीप तक, जंघा
चारण रुचक द्वीप तक तिर्यक्-लोक में जाते हैं । संग्रहणी टीका में कहा है कि"औदारिकस्य तिर्यग उत्कृष्टो विषयो विद्याधरान् आश्रित्याऽऽनन्दीश्वरात्, जङघाचारणात्, प्रत्यारूचक पर्वतात् ऊर्ध्वम् उभयान् प्रत्यापण्डुक वनात् ।” बैंक्रियस्याऽसंख्येया द्वीप समुद्राः, आहारकस्यम हाविदेहः, तैजसकर्मणयोः सर्वलोकः, इत्यादि।
-औदारिक शरीर का तिर्यक् उत्कृष्ट विषय विद्याधरों को आश्रित कर नन्दीश्वर द्वीप तक, जंघाचारण मुनियों को आश्रित कर सचक द्वीप तक, एवं ऊँचा तो दोनों को आश्रित कर पाण्डुक वन तक, वैक्रिय शरीर को आश्रित कर तिर्यक्विषय असंख्यात द्वीप समुद्र तक, आहारक-शरीर को आश्रित कर महाविदेह तक एवं तेजस कार्मण शरीर को प्राश्रित कर समस्त लोक तक समझना चाहिये।
श्री जिनलाभसूर्यादिसद्गुरुणामनुग्रहात् । क्षमाकल्याण गणिना निर्मिते स्मृति हेतवे ॥१॥ प्रश्नोत्तर सार्धशते, पूर्वार्धं परिपूर्णताम् । गतं स्यादत्र यः कश्चिद् दोषःशोध्यःसकोविदः ॥२॥
Aho! Shrutgyanam