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प्रश्न ७४:-"सव्वस्स उपहसिद्ध रसाइ अाहार पाग जणगं च
तेयगलद्धि निमित्त च तेयगं होइ नायव्वं ॥" --समस्त जीवों के लिये उष्णता से सिद्ध होने वाले रसादि आहार की परिपक्व स्थिति उत्पन्न करने वाला तेज तेजसलाब्धि का कारण भूत होता है, ऐसा जानना चाहिये। इस प्रकार जीवाभिगम वृत्ति के उल्लेखानुसार तेजोलेश्या तो तेजस् शरीर से प्रगट होती है, परन्तु शीत लेश्या कहाँ से प्रगट होती है ?
उत्तर-शीतलेश्या भी तेजस् शरीर से ही प्रगट होती है। श्री
तत्वार्थ सूत्र की टीका में कहा है कियथा:- “यदा उत्तरगुण प्रत्यया लब्धि रुत्पन्ना भवति तदा
परं प्रतिदाहाय विसृजति रोष विषादमानो गोशाला
दिवत् प्रपन्नस्तु शीत तेजसा अनुगृह्णाति ।" --- जब उत्तर गुण प्रत्यय वाली लब्धि उत्पन्न हो तब दूसरों को जलाने के लिये गोशाल के समान क्रोधमयी तेजोलेश्या प्रगट होती है और जब प्रसन्न हो तो शीतलेश्या से दूसरों का उपकार करती है।
लोक प्रकाश में भी इसी प्रकार कहा है :यथा :--अस्मादेव भवत्येवं शीतलेश्या विनिर्गतिः ।
स्यातां च रोषतोषाभ्यां निग्रहानुग्रहान्वितः ॥ -तेजस् शरीर से ही शीतलेश्या निकलती है, जो क्रोध एवं प्रसन्नता से क्रमशः निग्रह तथा अनुग्रह करती है।
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