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--लवण समुद्र में कुल सत्तर हजार योजन की शिखा कही गई है। इस रत्न प्रभा पृथ्वी के समभूभाग से कुछ अधिक सत्तर हजार योजन ऊँचे जाकर बाद में चारण आदि मुनि रुचक द्वीप में जाने के लिये तिरछी गति करते हैं। प्रश्न ७८-साधुओं को गृहस्थ के पास से फाड़ा हुआ ही वस्त्र
माँग कर धारण करना उचित है; किन्तु यदि फाड़ा हुआ वस्त्र न मिले तो स्वयं फाड़े कि
नहीं ! उत्तर- प्रमाण युक्त फाड़ा हुआ वस्त्र न मिले तो साधु स्वयं
भी फाडले । यह बात बृहत्कल्पवृत्ति के द्वितीय खण्ड
में शंका समाधान पूर्वक कही है । बृहत्कल्पवृत्ति का वह पाठ इस प्रकार है :यथा :--"नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीण वा
अभिन्नाई वत्थाई धारित्तए ॥" -'निर्ग्रन्थ साधु साध्वियों को बिना फाड़ा गया वस्त्र धारण करना या लेना कल्पता नहीं है।" इसलिए फाड़ा हुआ वस्त्र ही ग्रहण करना चाहिए। यदि ऐसा वस्त्र न मिले तो जितने प्रमाण से अतिरिक्त हेय हो उसे स्वयं फाड़ कर प्रमाण युक्त करे। __ यहां कुछ लोग यह शंका करते हैं कि वस्त्र फाड़ने में शब्द उत्पन्न होता है, जिससे सूक्ष्म पंख वाले जीव उड़ते हैं। ये दोनों ही ( निकले हुए शब्द एवं जीव ) लोक के अन्त तक जाते हैं। अथवा शब्द से प्रेरित एवं चालित होकर अन्य
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