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लधुत्व-पवन से भी अधिक हलका शरीर बनाना।
गुरुत्व--वज्र से भी अधिक भारी ऐसा शरीर बनाना जो प्रकृष्ट बलवाले इन्द्रादि देवताओं को भी दुःसह हो ।
प्राप्ति--भूमिस्थित अंगुली के अग्रभाग से मेरुपर्वत के अग्रभाग तथा प्रभाकरादि को स्पर्श करना।
प्राकाम्य--जल में, भूमि के समान प्रवेश किये बिना ही चलने की शक्ति एवं भूमि में जल के समान डूबने तथा ऊपर आने की शक्ति होना।
ईशित्व--तीनों लोकों की प्रभुता, तीर्थकर एवं इन्द्र की ऋद्धि को विकुर्वित करने की शक्ति । . वशित्व--समस्त जीवों को वश में करने की शक्ति प्राप्त करना।
अप्रतिघातित्व--पर्वतों के अन्दर भी निःशंक होकर चलना। अन्तर्धान--अदृश्य होने की शक्ति ।
कामरूपित्व--एक साथ ही विविध प्रकार के रूप बनाने की शक्ति, इत्यादि ये महान् ऋद्धियां हैं। यहां 'एमाईत्ति' में आदि शब्द से ये लब्धियां ग्रहण की गई है। प्रश्न ७३–तेजो लेश्या कितने क्षेत्रों में रहे हुए पदार्थों को जला
सकती है ? उत्तर-- श्री भगवती सूत्र की टीका में श्री गौतम स्वामी के
वर्णन के अन्तर्गत अनेक योजनाश्रित द्रव्यों को तेजोलेश्या जला सकती है। ऐसा ही प्रवचन सारोद्धार टीका में भी कहा है।
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