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अरिहंत चक्कि केसब बल संभिन्ने य चारणा पुव्वा । गणहर पुलाय आहारगं च न हु भवय महिलाणं ॥२॥ अभविय पुरिसाणं पुण दस पुचिल्लाड केलि त च । उज्जुमई विउमई तेरस एयाड नहु हुंति ॥३॥ अभविय महिलाणं पि हु एयाउण हुंति भणिय लद्धिो । महुक्खीरा सव्वलद्धी वि नेय सेसा उ अविरुद्धा ॥४॥
प्रज्ञापना सूत्र को टीका में स्त्रियों के मुक्ति स्थापनअधिकार में जो कहा गया है वह इस प्रकार है :"वादविकुर्वणत्वादि लब्धीविरहे श्र ते कनीयसिच जिनकल्प मनःपर्यव विरहेऽपि न सिद्धि विरहोऽस्ति ।"
-वाद वैक्रिय लब्धि का अभाव, अल्पश्रुतत्व जिन कल्प एवं मनःपर्यव का अभाव होने पर भी सिद्धि का अभाव नहीं है।
दूसरे ग्रन्थ की इस गाथा में से जो स्त्रियों की वैक्रिय लब्धि का अभाव कहा गया है, वह दूसरों का मत है जो बिना विचार किये ही कहा गया मालूम होता है। क्योंकि ऐसा मान लेने पर प्रज्ञापना सूत्र की टीका के तृतीय अल्पबहुत्व पद में स्त्रियों के वैक्रिय समुद्धात का जो कथन आया है, वह असंगत हो जाता है। __ शंका-अट्ठाईस लब्धियों के अतिरिक्त और भी कोई लब्धियां हैं या नहीं?
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