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प्रकार की बताते हुए भाषा एवं मनः पर्याप्ति के बहुश्रुत अभिप्रायों से किसी कारण वश एकत्व की विवक्षा की है। प्रवचन सारोद्धार के २३२ दो सौ बत्तीसवें द्वार में भी
'समगंपि हुँति नवरं पंचमछट्ठीउ अमरा" ___ यह लिखकर देवों की पांचवीं एव छट्टी पर्याप्त समकाल कही है। प्रश्न ६३-शास्त्रों में, उत्तर दिशा में मानसरोवर सुना जाता
है वह जम्बू द्वीप में है या अन्य किसी द्वीप में ?
और उसका कितना प्रमाण है ? उत्तर-- उत्तर दिशामें संख्यात योजन प्रमाण वाले द्वीपों में से
किसी एक द्वीप में संख्यात कोटा कोटी योजन प्रमाण वाला मान सरोवर है। ऐसा प्रज्ञापना सूत्र की टीका
में तीसरे अल्पबहत्व पद में कहा है। प्रश्न ६४--हंस जल मिश्रित दूध को जल से कैसे पृथक् कर
केवल दूध ही पीता है जल नहीं ? . उत्तर-- हंस की जिह्वा में अम्लत्व ( खटास ) होने से दूध
फट कर पृथक् हो जाता है, जिससे वह जलको छोड़
कर केवल दूध हो पीता है । श्री नन्दीसूत्र की वृत्ति में कहा है कि"अंबत्तणेण जीहाए कूचिया होइ खीर मुदयम्मि । हंसो मुत्त ण जलं आवियइ पयं तह सुसीसो ॥"
- जिह्वा में खटास होने से जल में दूध फट कर पृथक् हो जाता है, जिससे हंस जल छोड़ कर केवल दूध ही पीता है। इसी प्रकार सुशिष्य को अर्थ का पान (ग्रहण) करना चाहिये ।
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