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- चतुर्दश पूर्वधर - मनुष्य जब देवत्व प्राप्त कर लेता है तो उसको सम्पूर्ण श्रुत स्मरण नहीं रहता; क्योंकि उसमें विषय एवं प्रमाद की अधिकता हो जाती है, साथ ही तथाविधरा उस प्रकार के उपयोग का अभाव भी रहता है । परन्तु किसी-किसी को देश (कुछ भाग ) की स्मृति रहती है, किसीको उसके भी किसी भाग का स्मरण रहता है, किसी को ग्यारह अंगों में सबका स्मरण रहता है । एवं किसी को इन ग्यारह अंगों के किसी भाग का स्मरण रहता है । मनुष्य भव में भी अधीत सर्व श्रुत (पढ़ा हुआ समस्त विषय) स्मरण रहता भी है एवं न भी रहता है । क्योंकि इसमें भी श्रुत ज्ञान के विनाशक - मिथ्यात्वोदय, भवान्तर जन्म, केवल ज्ञान, व्याधि, एवं प्रमाद आदि कई कारण हैं । इसी प्रकार विशेषावश्यक में भी कहा है एवं श्री ज्ञातासूत्र के चौदहवें अध्ययन में तो तेतली मन्त्रीको पूर्वाधीत चतुर्दश पूर्व के स्मरण होने का उल्लेख है ।
प्रश्न ६६ देव एवं नारकी जिन पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण करते हैं उनको तथा कार्मण शरीर के पुद्गलों को अवधि ज्ञानादि से जानते हैं व देखते हैं या नहीं ?
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उत्तर - नारकी तो उन पुद्गलों को न तो जानते ही हैं एवं न देखते हैं । देवों में कोई जानते हैं कोई नहीं जानते ! श्री समवायाङ्ग सूत्र - वृत्ति में ऐसा ही कहा है, जिसका संक्षिप्त पाठ इस प्रकार है :
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"पोग्गलानेव जाणंति त्ति ।"
अर्थात् नारकी जिन पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण करते हैं उनको वे अवधि ज्ञान से नहीं जानते, क्योंकि वे पुद्गल उनके अवधि ज्ञान के विषय भूत नहीं होते । इसी प्रकार लोकाहार
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