________________
( ७६
)
उत्तर- तिर्यक्-जृभक देव व्यन्तर विशेष है। ये दीर्घवैताढ्य
पर्वत कांचनगिरि, चित्र-विचित्र एवं यमक-समक पर्वतों में रहते हैं । ऐसा श्री भगवती सूत्र के चौदहवें
शतक के अष्टम उद्देश में कहा है :यथा :-कवणगिरिकूडेसु चित्तविचित्त जमग समगे य ।
एएसु ठाणेसु वसंति तिरिअजंभगा देवा ॥ प्रश्म ६७-जिस प्रकार चक्रवर्तियों की सेवा १६ हजार व्यन्तर
देव करते हैं, उसी प्रकार अर्धचक्री वासुदेवों की
८ हजार देव सेवा करते हैं कि नहीं ? उत्तर- कुछ व्यन्तरदेव चक्रवर्ती वासुदेव प्रभृति मनुष्यों की
भी भृत्य के समान सेवा करते हैं, ऐसा प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में तथा तीर्थोद्गार प्रकीर्णक में
कहा है :यथा :-"अट्ठय देवसहस्सा अभिप्रोगा सत्र कज्जेसु ।"
समस्त कार्यो के लिये आठ हजार प्राभियोगिक देव नियुक्त
होते हैं। प्रश्न ६८-चतुर्दश-पूर्वधर मुनि को देवगति प्राप्त होने पर
पूर्व पठित सम्पूर्ण श्रुत स्मरण रहता है अथवा कम ? उत्तर- प्रायः पूर्व पठित श्रुत का थोड़ा ही भाग स्मरण रहता
है, सम्पूर्ण नहीं । इस सम्बन्ध में वृहत्कल्प वृत्ति की
पीठिका में कहा है किचउदस पुब्बी मणुप्रो देवत्त तंण संभरइ सव्यं । देसमि होइ भयणा सट्ठाण भवे वि भयणा उ ।
Aho! Shrutgyanam