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प्रश्न ६५-- असुरकुमार देव किसी समय वैमानिक देवों के रत्नों चुरा कर जब एकान्त में जाते हैं एवं वैमानिक देव उन पर प्रहार करते हुए उन्हें पीड़ा देते हैं तो उस समय एवं अन्य समय उनको जो दुःख होता है वह कितने काल तक रहता है ?
उत्तर- जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक एवं उत्कृष्ट छः मास तक दुःख रहता है । श्री भगवती सूत्र के तृतीय शतक के द्वितीय उद्देशक में इस सम्बन्ध में ऐसा कहा है
यथा: - " एषां रत्ना दातृणा मसुराणां कार्य देहं प्रव्यथयन्ते प्रहारैर्मध्नन्ति वैमानिका: देवाः तेषां च प्रव्यथितानां वेदना भवति जघन्येनाऽन्तमुहूर्तमुत्कृष्टत : यायावदिति ।"
षण्मासान्
वैमानिक देव रत्न चुराने वाले असुरों को प्रहार द्वारा पीड़ा देते हैं । प्रहार पीड़ित उन असुरों की यह वेदना (पीड़ा ) जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक एवं उत्कृष्ट छः मास तक रहती है ।
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योग शास्त्र वृत्ति में तो देवताओं को प्रा : सातावेदनी कहा है, यदि सातावेदनी हो भी तो केवल अन्तर्मुहूर्त्त तक, इसके पश्चात् नहीं ।
यथाः – देवाश्च सवेदना एवं प्रायेण भवन्ति यदिच असवेदना भवन्ति
ततोऽन्तर्मुहूर्त्तमेव न
पुरतः ।
प्रश्न ६६ - तिर्यक् ज्भक देव कहां रहते हैं ?
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