________________
( ७४ )
नव अंगुल तक) की हानि जाननी चाहिये । यह बात आवश्यक नियुक्ति के अभिप्राय से कही गई
है। यथागंतूण जोयणं जोयणं तु परिहाइ अंगुल पहुत्त। तीसेव य पेरंता मच्छी पत्ताउ तणुय अरा॥ --योजन योजन जाने के बाद मोटाई में दो से नव अंगुल जितनी हानि होती है। प्रान्त भाग में वह सिद्ध शिला मक्खी के पंख से भी अत्यधिक पतली होती है । प्रश्न ६०:-तीनों भुवनों में सर्वोत्कृष्ट रूप तीर्थकरो का, एवं
उनसे अनन्त गुण हीन रूप उनके गणधरों का होता है । और उन गणधरों से अनन्त गुण हीन रूप किन्हीं साधुओं का होता है या देवेन्द्र चक्रवर्ती
आदि का ? उत्तर-- गणधरों से अनन्त गुण हीन रूप आहारक लब्धि
वाले मुनियों के द्वारा किये गये आहारक शरीर का होता है। उनसे अनन्त गुण हीन रूप अनुत्तर देवों का, उनसे अनन्तगुण हीन रूप ग्रैवेयक देवों का, उनसे अनन्तगुण हीन रूप अच्युत देव लोक से लेकर (१२, ११, १० ६, ८, ७, ६, ५, ४, ३, २, १) प्रथम देव लोक तक के देवों का रूप अनुक्रम से प्रत्येक का अनन्तगुण हीन होता है। इसी प्रकार सौधर्म देवलोक के देवता के रूप से भवनपति, ज्योतिष्क, व्यन्तर, चत्र वर्ती, वासुदेव, बलदेव एवं महामाण्डलिक राजाओं का रूप क्रमश: अनन्तगुण
Aho! Shrutgyanam