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देवों की अपेक्षा विमानों की संख्या कम है, जबकि सामानिक देव तीस हजार हैं और विमान ६ हजार । इसी प्रकार पानत, प्राणत दोनों में चार सौ विमान हैं व सामानिक देव २० हजार हैं, वैसे ही प्रारण . अच्युत लोक में कुल तीन सौ विमान हैं और सामानिक दस हजार हैं। दूसरा कारण यह भी है कि सामानिक देवों के विमान पृथक हों तो किसी अभव्य को भी विमानाधिपति होने का अवसर आ जायगा। इधर आगम में ऐसा सुना जाता है कि
यथा-" अभव्य शक सामानिकः संगमको देवः, विमाना
धिपतित्वं तु अभव्यस्य असंगतम् ॥ अभव्यकुलके, चउदसरयण तंपियपत्तण पुणो विमाण सामित्त ।
अभव्य संगमक, इन्द्र का सामानिक देव है एवं अभव्य का विमानाधिपति मानना असंगत है। अभव्य कुलक में भी कहा है कि अभव्य जीव चतुर्दशरत्नत्व तथा विमानस्वामित्व नहीं प्राप्त करते। इन वचनों से यह निषेध है। अतएव अपने-अपने इन्द्र के विमानों में सामानिक देवों का निवास जानना चाहिये।
शंका-ऐसी स्थिति में एक विमान में वे महद्धिक देव किस स्थिति से निवास करते हैं ? समाधान-देश के समान देवलोक में तथा ग्राम नगरादि
दवला तथा ग्राम नगद के समान विमानों में महद्धिक देवों की निवास भूमि मोहल्लों के समान समझना चाहिये।
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