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इसमें किसी प्रकार की प्रसंगति नहीं है ।
प्रश्न ५१ : - प्रष्टापद पर्वत का और उसके ऊपर स्थित जिनमन्दिर का कितना प्रमाण है ?
उत्तर :- प्रष्टापद पर्वत आठ योजन ऊंचा एवं उसका विस्तार चार योजन का है । उसके ऊपर प्राधे योजन के विस्तार वाला एक योजन दीर्घ ( मोटा ) एवं तीन कोष ऊंचा, चार द्वार वाला मन्दिर है, जिसका निर्माण भरत चक्रवर्ती ने कराया है । इसका प्रमाण योगशास्त्र में इस प्रकार है::
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तमष्ट योजनोच्छांमं चतुर्योजन विस्तृतं । रोहत् सह सोदर्यैजहनुर्मित परिच्छदः ॥ १० ॥ तत्रैक योजनमायाममर्द्ध योजन विस्तृतं । त्रिगण्यृत्युन्नतं चैत्यं चतुद्वारं विवेश सः ॥११॥
- परिमित परिवार वाला जह नुकुमार अपने भाइयों के साथ आठ योजन ऊंचे और चार योजन विस्तार वाले प्रष्टापद पर्वत पर चढ़ा । वहां एक योजन दीर्घ ( मोटे ), अर्ध, योजन विस्तार वाले एवं तोन कोस ऊंचे चार द्वारों से युक्त मन्दिर है उसमें उसने प्रवेश किया ।
प्रश्न ५२: - प्रष्टापद पर्वत के ग्राठ सोपान ( सोढ़ीयाँ ) सुने जाते हैं । वे भरत चक्रवर्ती के द्वारा बनवाये हुये हैं या किसी अन्य के द्वारा ?
उत्तर :
अष्टापद पर्वत के वे ग्राठ सोपान भरत चक्रवर्ती के समय में थे ही नहीं, परन्तु चौथे प्रारे के व्यतीत होने
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