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समाधान--देवों के समान असुरों के लिये ये वस्तुएं स्पर्श मात्र से शस्त्ररूप नहीं बनतो क्योंकि असुर कुमार सदैवसे विकुर्वित शस्त्र वाले माने गये हैं। अतः उनमें देवताओं के समान वह अचिन्त्य पूण्य प्रभाव नहीं होता जिसके फलस्वरूप उनके स्पर्श मात्र से कोई भी वस्तु शस्त्र का रूप धारण कर सके । प्रश्न २७:-महद्धिक देव कितने द्वीप समुद्रों के चारों ओर प्रद
क्षिणा के समान घूमकर पुनः शीघ्र पाने में समर्थ होते
उत्तरः--महद्धिक देव रुचक द्वीप तक चारों ओर प्रदक्षिणा के
समान घूमकर पुनः आ सकते हैं। उसके बाद इसके आगे तो वे किसी एक दिशा में ही जा सकते हैं। प्रदक्षिणा नहीं दे सकते। ऐसा भगवती सूत्रके १८वें
शतक के सातवें उद्दे श में भी प्रमाण है :यथा-"देवेणं भंते महडिढये जाव महेसक्खे पभू लवण
समुदं अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छित्तए" हं ता पभू देवेणं भंते महडिढए एवं धायई संडं दीवं जाव हं ता पभू एवं जाव रूयगवरं दी जाव हंतापभूतेण परं वीती व तेजा नो चेवणं अणु परियट्टज्जा इति वीती वतेज्जत्ति ।
-हे भगवन् ! महासुखी महद्धिक देव लवण समुद्र के चारों ओर प्रदक्षिणा देकर पुनः शीघ्र आ सकता है । _हां गौतम पा सकता है। इस प्रकार महद्धिक देव धातकी खण्डद्वीप तथा रुचकवर द्वीप की प्रदक्षिणा करके पुनः प्रा
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