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( ३८ ) तुच्छ धर्म की श्रद्धा वाले होने से बिना मांगे वस्त्रादि नहीं देते। ___ साधुओं को शुद्ध उपधि की गवेषणा करनी चाहिये ऐसा भगवान् का उपदेश है, किन्तु ऐसा वैसा साधु उसको प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि वह दुर्लभ होती है। इसलिये ऐसे कार्य में लब्धिमान् अल्पबुद्धि वाले साधू को, ( उत्सार कल्प ) * करके वस्त्रेषणा
ध्ययन के उद्देश्य से कल्प करना चाहिये । उसके बाद कल्प किये हुए साधु को क्या करना चाहिये इस सम्बन्ध में कहा है :
हिण्डउ गीय सहायो सलद्धि, अहते हणंति सोलद्धि तो एक्कयो वि हिण्डइ अायारुस्सारिय सुयत्थो ।
-वे लब्धिमान साधु वस्त्र पात्रादि प्राप्त करने के लिये गीतार्थ साधुओं के साथ फिरे, इतना होने पर भी यदि प्राप्त न हो एवं वे गीतार्थ साधु उनकी लब्धि का हनन करे तो लब्धि वन्त साधु अकेला भी फिर सकता है। अकेला विचरण तो किस प्रकार करे इस सम्बन्ध में प्राचारांग सूत्र के अन्तर्गत पाये हुए वस्त्रैषणा एवं पात्रषणा अध्ययन के अर्थ उत्सार कल्प करके थोड़ाअभ्यास करने के पश्चात् पुनः लब्धिवन्त साधु को विचरण करना चाहिये।
शङ्का--कोई भी मनुष्य किसी की लाभन्तराय कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न लब्धिको क्या नष्ट कर सकता है ?
समाधान-ऐसा कहा जाता है गीतार्थ साधु उसकी लब्धि का हननकर देते हैं।
* उत्सार कल्प अर्थात् उस साधु को पृथक कर देना
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