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यथा-उत्तरकुरु देवकुराए मणुस्साणं भंते केवइयंकालं ठिई
पन्नता गोयमा० जहन्नेणं तिणि पलिग्रोवमाई पलियोवमा संखेज्ज भाग हीणाई उक्कोसेणं तिण्णिपलिग्रोवमाई॥
-इसी प्रकार प्रज्ञापना सूत्र की टीका पचम पद में भी ऐसा ही प्रमाण है। यथा-पल्योपमाऽसंख्येय भागश्च त्रयाणां पल्योपमाना
मसंख्येयतमो भागः।
इस प्रकार दो गाउ की उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्य की दो पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति होती है और दो पल्योपम की असंख्येय भागहीन जघन्य स्थिति तथा एक गाउकी उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की और एक पल्यो पम का असंख्येय भाग हीन जघन्य स्थिति होती है । प्रश्न ३०:-किसी भाग्यहीन पुरुष के संसर्ग से अनेक भाग्यशालियों
के भाग्योदय का घात होता है कि नहीं ? उत्तरः-भाग्यहीन पुरुष के संसर्ग से प्रायः कई भाग्य शालियों
के भाग्य का हनन होता है। इस सम्बन्ध में श्री बृहत्कल्पसूत्र की टीका में कहा है कि "किसी एक प्राचार्य का प्रा गच्छ वस्त्र पात्र एवं शय्या आदि के प्राप्त करने में लब्धिहीन था। ऐसा होने पर उस क्षेत्र में स्वपक्ष अथवा परपक्ष से गच्छ का अपमान होता है इधर वे साधु शीतादि परिषह को सहन करने में असमर्थ होते हैं और इधर गृहस्थ भी
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