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समाधान
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( १४ )
रावणीयसींहासो वनिविडो व पायपीढं मि । जिडो अन्नयरो वा गणहारि कहइ वीयाए ||
- राजाओं के द्वारा लाये गये सिंहासन पर अथवा उसके प्रभाव में भगवान के पाद पीठ पर बैठकर मुख्य अथवा अन्य गणधर दूसरी पौरुषी में धर्मदेशना देते हैं ।
प्रश्न : - ६. समवसरण | में भगवान के सन्मुख अल्प ऋद्धि वाले देव एवं मनुष्य महद्धिक देव तथा मनुष्यों का प्रणामादि से सत्कार करते हैं या नहीं ?
उत्तर :--
समवसरण में अपद्धि वाले देव तथा मनुष्य महद्धिक देवों एवं मनुष्यों का प्रणामादि से सत्कार करते हैं । यदि वे नहीं करते हैं तो आज्ञा भंग का दोष प्रसंग आता है ।
इस के सम्बन्ध में वृहत्कल्प भाष्य एवं प्रावश्यक सूत्र की वृहद् - वृत्ति में इस प्रकार कहा है :
एतं महडिढ़यं परिणवयंति, ठियभवि वयंति पणमंता । वि जंतणारा विकहा ण परोप्पर मच्छरो ण भयं ॥
- अल्प ऋद्धि वाले देव भगवान के समवसरण में चाहे पूर्व से ही बैठे हों, फिर भी वे बाद में प्राये हुए महद्धिक देवों को प्रणाम करते हैं तथा महर्द्धिक देव यदि पूर्व स्थित हों तो भी जो अल्प ऋद्धि वाले बाद में आते हैं वे पूर्वंस्थित महर्द्धिक देव यदि पूर्व स्थित हों तो भी जो अल्प ऋद्धि वाले बाद में प्राते हैं वे पूर्वस्थित महद्धिक देवों को प्रणाम करते हुए पुनः अपने स्थान पर जाते हैं ।
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