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यथासुखं समाधिना व्यवतिष्ठते । अथोपरि तीर्थमिति द्वार-भगवत्युत्थिते उपरि द्वितीय पौरुष्यां तीर्थं प्रथमगणधराऽपरो वा धर्ममाचष्टे ।"
--"इस प्रकार बलि डालने के पश्चात् भगवान् उठ करके प्रथमगढ़ के उत्तर दिशा के द्वार से निकलकर पूर्व दिशा में स्थित स्फटिक मणिमय देव छन्दक में सुख समाधि पूर्वक विराजमान होते हैं। भगवान् के उठ जाने के पश्चात् दूसरो पौरुषी में ज्येष्ठ गणधर अथवा दूसरे गणधर धर्मोपदेश देते हैं।
शङ्का-भगवान् उपदेश क्यों नहीं देते ? क्या गणधर के उपदेश देने में कुछ गुण हैं ? __ समाधान-गणधर के उपदेशों में कुछ गुण होते हैं, वे इस प्रकार हैं :
"खेय विणोप्रो सीसगुणादीवणा पच्चो उभयत्रो वि । सीसायरियकमो वि य गणहर कहणे गुणा होति ।।
भगवान का परिश्रम दूर हो, शिष्यों के गुण भी प्रकाश में आवें, श्रोताओं में गुरु-शिष्य दोनों के प्रति श्रद्धा-विश्वास उत्पन्न हो , प्राचार्य एवं शिष्य का क्रम भी बना रहे । इस दृष्टि से गणधर महाराज के द्वारा दिये गये धर्मोपदेश में कई गुण होते है। शङ्का-वे गणधर महाराज कहाँ बैठकर धर्मोपदेश
देते हैं ?
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