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उरूहिं, उरेणं विरेणं सव्वंगेहिं ५ पारहिं निज्जायमाणे निरयगामी, भवति, उरूहिं निज्जायमाणे तिरियगामी भवइ, उरेण निज्जायमाणे मणुयगामी भवति सिरेणं निज्जायमाणे देवगामी भवति सव्यंगेहिं निज्जायमाण सिद्धिगति - पज्जवसाणे, पन्नत्ते इति ।
प्रश्नः - १९ - योगद्धि निद्रा वाले जीव का बल वापुदेव से प्राधा कहा है, सो वह इस काल में है कि नहीं ।
उत्तर :--वह बल इस समय इस क्षेत्र में नहीं हैं क्यों कि यह बल प्रथम संघया वाले को हो होता है । इस समय थोद्ध निद्रा वाले का बल सामान्य लोक बल से दुगना तिगुना एवं चौगुना विशेष होता है, अधिक नहीं। इसके सम्बन्ध में निशोथचूरिंग को पीठिका में इस प्रकार कहा है
यथा - श्री द्वीपल परूणा कज्जड़ के
अद्वगाहा, केसवो वासुदेवा जं तस्स बलं तपवला अवलं श्रीराद्वियो भवति तं च पदम संघयरिणो, इवाणि पुर्ण सामन बलादुगुणं चउगुणं वा भवति, सो एवं बलजुत्तो, मा गच्छं रूसितो विणासेज्ज तम्हा सो लिंगपारंची काव्वो सोय सारगुण तं मन्नइ " मुय लिंगं रात्थि तुह चरणं जड़ एवं गुरुणा भणितो मुक्कं तोसोहणं
हन मुयइ ता संघो समुदितो हरति, न एक्को वा एगस्स पदो सं गमिस्सति " दुट्ठो य वावादेस्सति
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