________________
( ३१ )
निशीथ चूरिंग के के सोलहवें उद्देश में साधु के पात्र गवेषणा के अधिकार में इसका उल्लेख इस प्रकार प्राता है -
समणो वासगो वा पडिमं करेउ घरं पच्छागतो तं पडिग्गहगं साधूणं दिज्ज ग्रहाकड | "
-- श्रावक प्रतिमाएँ पूर्ण करके पुनः घर आवे तो पात्र श्रादि उपकरण साधुओं को दे दे। इसी प्रकार का प्राशय वृहत्कल्प वृत्ति के द्वितीय खण्ड में तथा उपासक प्रतिमा पञ्चाशक सूत्र वृत्ति में भी कहा गया है ।
प्रश्न : - २४ - इसकाल में समय समय पर प्रत्येक द्रव्य में प्रत्येक समय अनन्त पर्यायों की हानि होती है, ऐसा सुना जाता है सो यह शास्त्र सम्मत है अथवा लोकोक्ति मात्र हो ?
उत्तरः-- वर्तमान समय में प्रति द्रव्य प्रत्येक के आश्रित होकर समय समय पर अनन्त पर्योयों की हानि वाला होता है, यह कथन शास्त्रानुसार ही है, लोकोक्ति मात्र नहीं । इस सम्बन्ध में पंचकल्प भाष्य में कहा है :
यथा - " भणियंच दूसमाए, गामा होहिंति तु मसाण समा । इयखेत्त गुणाहानि, गुणाहानि, काले विउ होति माहाणी || समये समये गंता, परिहार्यंते उ वण्ण माईया | दव्वाइ पज्जाया, अहोर तत्तियं चेत्र ॥ दूसम अणुभावेणं, साहू जोगा तु दुल्लभा खेत्ता । काले विय दुम्भक्खा, अभिक्खणं हुंति उमरा य !!
Aho ! Shrutgyanam