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मनुष्य को स्त्री ( मानुषी ) सप्तम नरक योग्य प्रायु - नहीं बांधती, किन्तु अनुतर देव लोक का अायुष्य अवश्य बांधती है । इस सम्बन्ध में श्री उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में नेमि एवं राजीमती के पूर्व भव का दृष्टान्त प्रसिद्ध है; जो इस प्रकार है
__ " ततो ऽपराजिताभिख्ये विमाने त्रिदशो धनः यशोमत्यपि चारित्रं चरित्वा तत्र सोऽभवत् ।"
इसके बाद अपराजित नाम के विमान में धन एवं यशोमति चारित्र का पालन कर देव हुए।
श्री विजयचन्द्र चरित्र में भी प्रदीप पूजा के अधिकार में कहा है
सा सग्गाश्रो चविऊ एत्थ वि जम्ममि तुहसही होइ । तत्तो मरिउ तुम्भे सबढे दो वि देवत्ति ।।
वह स्वर्ग से च्यव कर जन्म लेने के पश्चात् तेरी सखी होगी। बाद में तुमदोनों हो मर कर सर्वार्थ सिद्ध विमान में देव बनोगे। प्रश्नः-१६-लोक एवं धर्म में पुरुषों की प्रधानता होने पर भी
जो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों के तपश्चर्यादि प्रमुख धर्मकार्यों में विशेषरूप से सामर्थ्य एवं उद्यम दिखाई
दे रहा है, इसका क्या कारण है ? उत्तर :-उस प्रकार के शुभ अध्यवसायों से प्राप्त एवं उनका
सत्स्वभाव हो इसका मूल कारण है। दूसरा कोई कारण नहीं। इसीलिये आगमों में इनका (स्त्रियों का) मुक्तिगमन माना है तथा सप्तमनरक पृथ्वी गमन निषिद्ध है । ऐसा कहा है
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