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मामका
विश्व में जड़ और चेतन ये दो ही प्रमुख पदार्थ हैं । अर्थात् सारी सृष्टि जड़ और चेतनमय है । जाव चैतन्य-स्वरूप है और पुद्गल आदि जड़ पदार्थ हैं । जीव का लक्षण है-'ज्ञान' । प्रत्येक आत्मा में थोड़ा या बहुत ज्ञान है ही। ज्ञान का विकास प्रथमतः इन्द्रियों एवं बुद्धि आदि से संबंधित है अतः एकेन्द्रिय प्रादि जोवों का ज्ञान बहुत हो सीमित होता है और मनुष्य में हा ज्ञान का अधिकाधिक विकास हो सकता है । मन-पर्यव-ज्ञान और केवल्यज्ञान मनुष्य के सिवाय अन्य किसी प्राणी को नहीं हो सकता। कैवल् यज्ञान ही ज्ञान की परिपूर्णता है ।
जहां तक मनुष्य को पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता वहां तक जिज्ञासायें और सन्देह बने रहते हैं। समय-समय पर स्वतः या दूसरे किसी से कुछ ज नकर या सूनकर मानव मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उठते हैं। उनमें से कईयों का समाधान तो स्वत हो जाना है पर कई प्रश्नों का समाधान दूसरे अनुभवो एवं ज्ञानो पुरुषों से भी प्राप्त हो सकता है। स्वयं ज्ञानो पुरुष भी अनेक बार दूसरों के मन में उठने वाले प्रश्नों को स्वतः उठाकर उनका समाधान कर दिया करते हैं।
प्रश्नोत्तर शैली द्वारा ज्ञान के विकास को प्रणाली बहत प्राचीन है । प्राचीन ग्रन्थों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि इस
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