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अथ प्रश्नोत्तर सार्धशतक नौ बीजक लिखीयै छै
(१) पहलै बोले-तीर्थंकर देव समवसरण में देशना अवसरै पाद पीठ ऊपर चरण राखी बेसे, हाथ दोनु जोग मुद्रायें राखै, प्राचार्य पण प्रायें इन मुद्रायें करीने व्याख्यान करै। भगवान मुखें मुहपत्ती न राखें, प्राचार्य राखें, इत्तरो विशेष छै । ए अधिकार 'चैत्य वन्दन बृहद् भाष्य' में कह्यौ छै ।१।
(२) दूर्जे बोलैं-भगवान देशनां प्रारंभतां चतुर्विध संघ रूप तीर्थ ने 'नमो तित्थस्स' इण वचने नमस्कार करी देशनां देवें । ए अधिकार 'अावश्यक नियुक्ति' प्रमुख में तथा 'चैत्य वन्दन बृहद् भाष्य' में कह्यौ छै ।२।
(३) तीजै बोलैं भगवान दीक्षा लेतां सिद्ध भगवान ने नमस्कार करै । ए अधिकार 'पाचारांग सूत्रै दूजे श्रत स्कन्धे छठे अध्ययनै छ ।३।।
अन्त
तथा निश्चय नय मतें शैलेसी ने चरम समय जीवनें धर्म नी प्राप्ति हुवै तेह थी पूठलां समयां मांहे सम्यक्त्वादिक छ तेह सर्व धर्म नौं साधन थीज जाणेवौ। ईत्थं एवं भूत रूप निश्चय नय छै । धर्म संग्रहणी शास्त्र में कह्यो छै ।१५१॥
इति श्री वाचनाचार्य श्री मद्अमृत धर्म गणि विनेय वाचक क्षमा कल्याण गणि विनिर्मित प्रश्नोत्तर सार्धशतकस्य सूचीनाम् भाषाया मुत्तरार्धम् ।
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