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(घ) इस ग्रन्थ का गुजराती अनुवाद श्री विजय महेन्द्र सूरिजी ने सं० २०१४ माव सुदि ५ पाटड़ो में पूर्ण किया और वह संवत् २०१५ श्रा वर्द्धमान सत्य नाति हर्ष सूरि ग्रन्थ माला, अहमदाबाद से प्रकाशित हुा । उसको भूमिका में प्रस्तुत प्रन्थ और उसके रचयिता के सबंध में लिखा है-कि “इस ग्रन्थ में पागम, प्रकरण तत्वज्ञान, और अनुष्ठान गन अनेकविध रहस्य प्रश्नोत्तर के रूप में उपस्थित किये गये हैं । ऐसे प्रश्नोत्तर खूब चिन्तनशील और धर्म ग्रंथों का गम्भीर अभ्यासी ही उपस्थित कर सकता है । इस ग्रंथ के रचयिता महामहोपाध्याय क्षमाकल्याणगरिण उनके ग्रथों के आधार से आगम, प्रकरण, और तत्वज्ञान के गम्भीर अभ्यासी होने के साथ हो सतत् चिन्तनशोल महापुरुष ज्ञात हैं । इस ग्रंथ में उन्होंने आगम, तथा अन्यानेक (करीब ६०) ग्रथों के प्रमाण एवं उदाहरण देने के साथ अपना अनुभव भी समावेशित कर दिया है । इस ग्रन्थ के कई प्रश्न तो ऐसे हैं कि उनका उत्तर देने में बड़े एवं अच्छे विद्वान भी विचार में पड़ सकते हैं । कई प्रश्नों का समाधान तो वास्तव में ही अाज के जिज्ञासुओं के लिए भी बहुत उपयोगी एव आवश्यक है।"
प्रश्नोत्तर सार्धशतक मूल ग्रंथ तो संस्कृत में रचा गया है, पर इसका राजस्थानी भाषा में सारांश भी क्षमाकल्याण जी ने स्वयं ही लिखा है। "प्रश्नोत्तर सार्धशतक भाषा" के नाम से उस सार या बीजक की रचना सम्वत् १८५३ के बैशाख बदि १२ बुधवार आर्या खुस्याल श्री के लिए बीकानेर में की गई है । इसको हस्तलिखित प्रतियां बीकानेर अहमदाबाद आदि के ज्ञान भण्डारों में प्राप्त हैं । उसकी भाषा और शैली का परिचय कराने के लिए ग्रादि और अन्त का कुछ अंश नीचे दिया जा रहा है।
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