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सिंहासणे निसन्नो, पाए ठविउण पाय पीढमि । कर धरिय जोग मुद्दो, जिणनाहो देसणं कुणइ ॥५४॥ तेणं चिय मूरिवरा, कुणंति वक्खाण मेय मुदाए । जं ते जिणपडिरूवा, धरंतिमुह पोत्तियं नवरं ॥५॥
इस प्रमाण से समवसरण में भगवान के आसन की विवेचना की गई है।। १।। प्रश्न-२. भगवान् धर्मदेशना के प्रारम्भ में किसको प्रणाम
करते हैं ? उत्तर :- साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविका के चतुर्विध संघ
रूप तीर्थ को "नमो तित्थस्स" यह कह कर प्रणाम
करते हैं ।। २॥ प्रश्न :-३. भगवान् दीक्षाग्रहण करते समय किसको नमस्कार
करते हैं ? उत्तर :-- भगवान् दीक्षा ग्रहण करते समय सिद्ध भगवन्तों को
नमस्कार करते हैं ! उस समय उनके लिये यही योग्य होता है। प्राचाराङ्ग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध
के छठे अध्याय में कहा भी है :तोणं से समणे भगवं महावीरे पंच मुट्टियं । लोयं करेत्ता सिद्धाणं नमोक्कारं करेइ इत्यादि ।
उसके पश्चात् वे श्रमण भगवान् महावीर पञ्चमुष्टि लोच करके सिद्धों को नमस्कार करते हैं ॥ ३ ॥
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