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१. प्रश्नोत्तर सार शतक संवत् १८८४ (?), जयपुर । २. दोवाली व्याख्यान, संवत् १८६६ ज्येष्ठ शुक्ला १३,
अजीमगंज। ३. सम्मेत शिखर स्तवन, गा० १० संवत् १८७६ माध
बदि ७।
स्वर्गवास
संवत् १८६८ में आपको वृद्धावस्था के कारण शारीरिक अस्वस्थता का विशेषतः अनुभव होने लगा, इस संवत् के चैत्र शुक्ला ८ को कृष्णगढ़ से बीकानेर की प्रार्या खुस्याल श्री को पत्र में लिखा है, कि-"शरीर को शिथिलता है। राजाराम ने प्रतिष्ठार्थ बुलाया है ।" फिर वैशाख वदि १४ जोधपूर से उन्हीं को पत्र दिया है उसमें लिखा है कि "वैशाख बदि १ को पिछले पहर विहार कर अजमेर, मेड़ता, बडलू होते हुए १२ (द्वादशी) को यहां पाये हैं, सुदि १२ को प्रतिष्ठा है। ज्येष्ठ तक यहां रह फिर बीकानेर पाने का परणाम है, गोडों में बहुत दर्द है। शारीरिक शिथिलता (बहुत) है" इत्यादि ।
संवत् १८६६ में आप बीकानेर पधार गये थे। सवत् १८६६ में आपको हरस रोग को बहुत अशाता उत्पन्न हुई। पर आपको शारीरक महत्व नहीं था । अत. औषधादि उपचार विशेष नहीं किया करते और शरीर के ऐसी अस्वस्थता (वेदना) पर भी नित्य भांडासरजी नेमिनाथजी के मन्दिर (दूर होने पर भी) दर्शनार्थ जाया करते थे। इसके सम्बन्ध लिये संवत् १८७१ के कार्तिक कृष्णा ३ को देशनोक से पं० ज्ञान ने पत्र दिया है उसमैं लिखा है
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