Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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[ २३ ]
विषय
आपका गम भी सर्वज्ञ प्रभाव नहीं करता वह तो सद्भाव ही सिद्ध करता है......
उपमान प्रर्थापत्ति भी सर्वज्ञका प्रभाव सिद्ध नहीं करते......
अभाव प्रमाण स्वयं ही अभावरूप है अतः सर्वज्ञका अभाव नहीं कर सकता ..... ईश्वरवाद
ईश्वर सिद्धिके लिये नैयायिक वैशेषिकका पूर्व पक्ष
नैयायिक पृथ्वी, पर्वतादि पदार्थ किसी बुद्धिमान से निर्मित हैं, क्योंकि वे कार्य हैं.....
पृथ्वी आदि कार्य इसलिए कहलाते हैं कि वे सावयव हैं...
शरीर रहित होने से ईश्वर की उपलब्धि नहीं होती..... ज्ञान चिकीर्षा और प्रयत्नाधारता ये ही कर्तृत्व है...... व्यास ऋषि ईश्वर को मानते हैं.....
स्वरूप प्रतिपादक वेद वाक्य भी इस विषय में अप्रमाण नहीं.....
भगवान करुरणा से शरीरादि की रचना करते हैं.....
वार्तिककार का ईश्वर सिद्धि के लिये अनुमान......
जैन द्वारा ईश्वरवाद का निरसन .....
पृथ्वी आदि में कार्यत्व सिद्धि के लिये प्रयुक्त सावयवत्व हेतु का खंडन .... योग की विनाश और उत्पाद की प्रक्रिया हास्यास्पद है......
आकाशवत् पृथ्वी आदि में भी कर्त्ता का अभाव है......
अचेतन पदार्थ चेतन से अधिष्ठित होकर ही कार्य करे ऐसा नियम नहीं .....
कारणों की शक्ति का ज्ञान होने पर ही कर्त्ता प्रवृत्ति करता है ऐसा नहीं है कर्त्ता
श्रापके यहां सत्ता किस रूप है ?....
ईश्वर की बुद्धि क्षणिक है या नित्य ? दोनों पक्ष गलत हैं.....
ईश्वर और हमारी बुद्धि में बुद्धिपता समान होने पर भी ईश्वर की बुद्धि नित्य है ऐसा विशेष स्वीकार करें तो घटादि और पृथ्वी आदि में कार्यत्व समान होने पर भी घटादि कर्ता है और पृथ्वी आदि का नहीं ऐसा विशेष भी स्वीकार करना चाहिये......
पिशाच आदि भी शरीर मुक्त होने से ही शाखाभंगादि कार्य करते हैं न कि बिना शरीर के ..... ईश्वर का शरीर कार्यरूप है या नित्य ? .....
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अनेक प्रकार के हैं ....
योग के ईश्वर कर्तृत्व सिद्धि के लिये प्रयुक्त अनुमान में बुद्धिमान काररणपूर्वकत्व साध्य है उसके साथ कार्यत्व हेतु की व्याप्ति कथमपि सिद्ध नहीं होती......
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