________________ (24) इससे पश्चात्वर्ती ग्रन्थों में ग्रन्थकारों ने परमेष्ठी पद का प्रयोग प्रचुरता से किया है। दिगम्बर श्रुत साहित्य में आचार्य कुंदकुंद रचित 'मोक्ष पाहुड़' में स्पष्टतया उल्लिखित है कि "अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांच परमेष्ठी है।" वे आत्मा के विषय में चेष्टा रूप हैं, आत्मा की अवस्था हैं, इसलिए निश्चय से मुझे आत्मा का ही शरण है। __श्री कुंदकुंदाचार्य (पहली शती) ने स्पष्टतया इन पाँच पदों का परमेष्ठी रूप से विधान किया है। इसके अतिरिक्त 'स्वयंभू स्तोत्र' के टीकाकार ने इसकी व्याख्या की है, जो परम पद में स्थित है, वह परमेष्ठी है। "भाव पाहुड़' तथा 'समाधि शतक' में वर्णन है, 'जो इन्द्र, चन्द्र, धरणेन्द्र के द्वारा वंदित ऐसे परम पद में स्थित है, वह परमेष्ठी होता है। इस प्रकार सर्वप्रथम कुंदकुंदाचार्य के साहित्य में इसकी उपलब्धि है। पश्चात्वर्ती अनेक ग्रन्थों में परमेष्ठी शब्द का प्रयोग किया गया है। ___ जैन वाङ्मय के अतिरिक्त जैनेतर साहित्य में 'परमेष्ठी' शब्द का उपयोग किया गया है या नहीं? उस पर भी हम दृष्टिपात करें। भारतीय वाङ्मय में प्राचीनता की अपेक्षा से वेदों का महत्त्व सर्वाधिक है। वेदों में 'परमेष्ठी' पद का उल्लेख कहाँ कहाँ किस सन्दर्भ में हुआ है? उसका आकलन करेंगे। वैदिक सन्दर्भ में प्रयुक्त परमेष्ठी___ अध्यात्म विद्या का अक्षय भण्डार होने से हिन्दु संस्कृति में वेदों का अत्यधिक महत्त्व है। स्व-स्वरूप को पहचानकर परम-पदकी स्थिति को किस प्रकार प्राप्त करके जीवन सफल बनाया जाय? वह वेदों में सुन्दर रीति से प्रतिपादन किया है। अथर्ववेद के अन्तर्गत 'धर्मप्रचार' सक्त में परमेष्ठी पद का निर्देश है कि 'हे परमेष्ठी (श्रेष्ठ स्थान में रहने वाले) ज्ञान को प्राप्त करने वाले अग्ने तू तोले हुए घी आदि का भोजन कर और दुष्टों को विलाप करा। यहाँ सायणाचार्य 'परमेष्ठी' की व्याख्या करते हैं-'उत्कृष्ट स्थाने तिष्ठतीति परमेष्ठी। स्वर्गाद्युत्कृष्ट स्थान निवासिन्। तिष्ठते औणादिकः किनि प्रत्ययः। सायणाचार्य का अभिप्राय है कि जो स्वर्गादिक उत्कृष्ट स्थान में स्थित है, वह परमेष्ठी है। सातवलेकर इसकी व्याख्या अन्य रीति से करते हैं- 'परम पदे स्थाता' इति परमेष्ठी। परम श्रेष्ठ अवस्था में रहने वाले, शरीर को वश में रखने वाले, ज्ञानी धर्मोपदेशक। 1. मोक्ष पाहड. गा.१०४. 2. स्व. स्तोत्र. टी. 31 3. भा. पा. टी. 121 4. अथर्व. 1.7.2. 5. अथर्व. सायण भाष्य 1.7.2.6. 6. अथर्व, सात. भाष्य. 1.7.2.