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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
धर्म - प्रभाव प्रयत्न करने पर भी एक की उस कार्य में विजय और दूसरे की पराजय दिख पड़ती है । समान साधन और समान ही प्रयत्न करने पर विजय और पराजय का कारण क्या? विचारक मनुष्य विचार द्वारा इस कारण को शोधते हुए स्वयं निश्चय कर सकता है कि इन तमाम बातों में कारण भूत मात्र एक धर्म ही है । धर्म का विषय बहुत गहन है। उसके कार्य और कारण के नियमों का अभ्यास बहुत सूक्ष्मता से करना चाहिए । धार्मिक सूक्ष्म ज्ञान के सिवा मनुष्य बहुत बार गंभीर भूल कर बैठता है और उससे अपनी धार्मिक श्रद्धा को शिथिल कर लेता है।
दृष्टांत के तौर पर धर्म श्रद्धा के शिथिल होने का बहुत बार यह कारण बनता है, पाप वृत्ति से आजीविका करनेवाले कपट प्रपंच रचने वाले और पाप में अधिक प्रवृत्ति करने वाले बहुत से मनुष्य सुखी दिखाई देते हैं । व्यवहारिक कार्य प्रपंच में भी कदाचित उन्हें सफलता प्राप्त होती दिखाई देती है। इत्यादि प्रत्यक्ष कारणों को देखकर बहुत से मनुष्य अपने दिल में शंकाशील बनते हैं कि धर्म है या नहीं? धर्म का फल मिलता है या नहीं? पापी लोग सुखी क्यों है? धर्म करनेवाले दुःखी क्यों दिखाई देते हैं? इत्यादि शंका की नजर से धर्म तथा उसके फल को देखते हैं । सच पूछो तो इस प्रकार की शंका करने वाले मनुष्यों को धर्म और उसके कार्य कारण के नियमों का पूर्ण परिज्ञान ही नहीं होता, इसी से बाह्य व्यवहार को देखकर उनके दिल में शंकायें पैदा होती हैं, परंतु उन्हें सोचना चाहिए कि संसार में कोई - सा भी कार्य, कारण के बगैर निष्पन्न नहीं
होता।
जमीन में बीज बोये बाद हवा, पानी और खाद आदि निमित्त सर्वथा अनुकूल हों तो वह बीज अल्प समय में ही अंकुरित हो शाखायें, पत्तियें वगैरह उत्पन्न कर एक वृक्ष के रूप में नजर आता है, और समय पर फल भी देने में समर्थ होता है परंतु पर्याप्त अनुकूल साधन होने पर भी वह बीज एक ही दिन में महान वृक्ष के रूप में नहीं दीख सकता । क्योंकि कारण को कार्य के रूप में आने के लिए कुछ भी समयान्तर या व्यवधान की जरूरत होती है । एवं पाप रूपी वृक्ष के कड़वे फलों के साथ भी इस व्यवधान की समानता समझ लेना