________________
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
निर्वासित जीवन निर्वासित जीवन प्रातःकाल का समय है । सैनिकों की एक कतार लगी हुई है । घोडे पर चढ़ा हुआ एक तेजस्वी युवक अपने सैनिकों को उपदेशकर रहा है । भाइयो! आज युद्ध का दिन है । इतने दिनों तक मैंने जिस शिक्षा की तैयारी की है आज उसकी परीक्षा का समय है । मैं समझता हूं कि जंगली पल्ली पति के साथ जबरदस्त सेना है तथापि हम सुशिक्षित क्षत्रिय पुत्रों के सामने वह युद्ध में अधिक समय तक नहीं ठहर सकती । इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है कि विजय हमारे साथ है । बस अब देरी करने का समय नहीं है । शत्रु सेना पर आक्रमण करो।
कैसा भयंकर युद्ध ठना हुआ है । युद्ध के बाजें बज रहे हैं । सैनिकों के हृदय में उत्साहपूर्ण वीरता की लहरें उमड़ रही हैं । अतः उन्मत्त होकर सैनिक लोग शत्रुओं पर आक्षेप कर चिल्ला रहे हैं । घोड़े हिनहिना रहे हैं। हाथी चिंघाड़ रहे हैं । मरणोन्मुख सिपाही कराह रहे हैं । एक ओर पल्ली पति की अगणित सेना
और दूसरी और महाबल की छोटी सी किन्तु शिक्षित सेना शत्रुओं पर झपट रही है। सैनिकों के हाथ में रहे हुए तीर, तलवार, भालें आदि शस्त्र खून से सने हुए हैं। महाबल कुमार विलक्षण साहस धारणकर वीरता के साथ शत्रु सेना के सेनापति पल्ली पति पर टूट पड़ा । महाबल और उसके सैनिकों का पराक्रम देखकर शत्रुसेना में भगदड़ मच गयी। जिस क्रूर नामक पल्लीपति को दो दफा आक्रमण करने पर भी महाराज शूरपाल का युद्ध कुशल सेनापति परास्त न कर सका था उसी प्रबल शत्रु के आज समर भूमि में महाबल कुमार ने अपनी वीरता से दांत खट्टे कर दिये । उस भग्नसेना - पल्लीपति ने महाबल का पराक्रम देख निराश हो उसे आत्मसमर्पण कर दिया । अब शत्रु को कैदकर और विजय की रणदुंदुभी बजाते हुए हर्षपूर्वक अपनी सेना के साथ महाबल कुमार अपनी राजधानी की तरफ चल पड़ा।
इधर राजपुरुषों ने मलयासुंदरी ने महल में प्रवेश किया और उसका स्वाभाविक रूप देख वे आपस में बोलने लगे - 'अरे! हमारे भय से इतने शीघ्र
148