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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
निर्वासित जीवन ही अपने राक्षसी रूप को त्यागकर कैसा सुंदर रूप बना लिया ।' दूसरा बोला - कुछ भी हो महाराज की आज्ञा होने से हम इसे छोड़ नहीं सकते । तिरस्कार के शब्दों से वे मलयासुंदरी को बोले - अरे पापिनी! अभी तक तूं कितने मनुष्यों का संहार करेगी? अरे भाई! देखते क्या हो? इसे पकड़कर बांध लो! यों कह राजपुरुषों ने मलया सुंदरी को पकड़कर मजबूत बंधनों से बांध लिया और उसे महल से बाहर ले आये । राजा ने पहले से ही द्वार पर रथ तैयार रखाया था । मलयासुंदरी को उसमें बैठाकर शीघ्रता के साथ उस रथ को भयंकर अटवी की तरफ ले जाया गया । इस आकस्मिक घटना से मलयासुंदरी एकदम स्तब्ध हो गयी। उसने सोचा - मैंने क्या अपराध किया है कि जिससे येराजपरुष मेरा इतना तिरस्कार कर रहे हैं? मालूम होता है; किसी कारण ये मुझे मारने के लिए या कहीं भयानक जंगल में छोड़ आने के लिए ले जा रहे हैं? हाय कर्म की कैसी विचित्र गति है! मेरे सामने कोई नजर भर के भी नहीं देख सकता था। परंतु आज एक पतिदेव के अभाव में मुझ पर कितना भयंकर जुल्म किया जा रहा है! न मालूम इसका क्या कारण होगा? मैंने राजा का ऐसा क्या अपराध किया होगा? या मेरा पुण्य पूर्ण होने पर किसी पूर्व जन्म के अशुभ कर्म का फिर से उदय हुआ है। मनुष्य को मालूम नहीं होता, क्लिष्ट कर्मों के विपाक का किस वक्त उदय होगा? हे हृदय! अब तूं इन दुःखों को सहने के लिए फिर से वज्र के समान कठिन बन जा।' मन को धीरज देकर वह महाबल के बतलाये हुए श्लोक का स्मरण करने लगी।
रथ सहित मलयासुंदरी को लेकर राजपुरुष मनुष्यों से रहित और हिंसक पशुओं से व्याप्त एक भयानक अटवी में आ पहुंचे। उसे रथ से नीचे उतारा गया। उसका राजतेज सुंदर और करुणा पैदा करनेवाली सौम्य मुखमुद्रा तथा उसके अंबुज समान नेत्रों से मोतियों के जैसे टपकते हुए अश्रु बिन्दु देखकर उनमें से एक क्षत्रिय राजपुरुष का हृदय द्रवित हो उठा । वह अन्य सुभटों से बोला – भाइयो! किसी भी कारण राजा ने इस भद्राकृति वाली स्त्री को राक्षसी समझकर हमें इसके वध की आज्ञा दी है; परंतु इस स्त्री की करुणाजनक मुखाकृति देखकर यह
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