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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
निर्वासित जीवन ने फिर वही अपनी पुरानी याचना प्रकट की । मलयासुंदरी चुप हो रही । ___ पवन अनुकूल होने से बलसार सार्थवाह के जहाज थोड़े ही दिनों में बर्बरकूल जा पहुंचे। उसने अपना तमाम माल वहां पर काफी नफे से बेच डाला। मलयासुंदरी से किसी तरह की अपनी इच्छापूर्ण होती न देखकर उस दुष्ट ने उसे बहुत सा धन लेकर किसी रंग करनेवाले निर्दय रंगरेज लोगों के हाथ बेच दिया । वहां पर भी उसे विषयवासना से अंध बने और उसके रूप से मोहित हुए युवक पुरुषों ने काम याचना के लिए बहुत ही समझाया बुझाया परंतु उसकी मानसिक दृढ़ता को देखकर वह अपने कार्य में सफल न हुए । मलयासुंदरी ने जब उनका कहना मंजूर न किया तब उन निर्दययुवक रंगरेजों ने उसके शरीर में सुईयाँ चुभोकर उसका रुधिर निकाला । इससे मलयासुंदरी को असह्य वेदना के साथ मूर्छा आ गयी । कुछ दिन के बाद जब उसके शरीर में फिर से रुधिर भर आया तब फिर उन्होंने पूर्व के समान ही उसके शरीर से खून निकाला। इस तरह हमेशा खून निकालकर वे उस खून को कपड़े रंगने में उपर्युक्त करते थे। इस जगह मलयासुंदरी को जो वेदानायें सहनी पड़ीं वैसे दुःख उसने कभी कानों से भी न सुने थे।
एक दिन उन लोगों ने फिर मलयासुंदरी के शरीर से रुधिर निकाला, इससे मलयासुंदरी असह्य वेदना के कारण मूर्च्छित हो मृतक की तरह जमीन पर पड़ी थी। उसका सारा शरीर रुधिर से सना हुआ था। उस समय उस घर के तमाम मनुष्य किसी एक प्रसंग से घर के अंदर गये हुए थे। ठीक इसी समय आकाशमार्ग से अकस्मात् एक भारंड पक्षी वहां आ पहुंचा । वह पक्षी उस मकान के गृहांगण में अन्य कोई न होने से बेहोश पड़ी मलयासुंदरी को मांस का लोथड़ा समझकर ऊठाके ले गया।
भारंडपक्षी बहुत बड़ी पांखोंवाला होता है । सुना है कि उसमें हाथी को भी उठा ले जाने का सामर्थ्य होता है । वही भारंडपक्षी मांसपिंड की भ्रांति से मलयासुंदरी को उठा ले गया। अब वह समुद्र पर से उड़ता हुआ किसी द्वीप की तरफ जा रहा था। रास्ते में सामने से आता हुआ एक भारंडपक्षी और मिल गया।
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