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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र स्वर्ग गमन और उपसंहार
उसने अपने अंतिम दिनों में घोर तपश्चर्याकर और निरन्तर ज्ञानध्यान में ही लीन रहकर बहुत से क्लिष्ट कर्मो को नष्ट कर दिया था । यह तो हम प्रथम ही लिख चुके हैं कि उसके घोर तपश्चरण और विशुद्ध चारित्र के कारण उसे अवधिज्ञान पैदा हुआ था । एक दिन शरीर शिथिल होने पर उसने अपने ज्ञानबल से जान लिया कि अब उसका आयुष्य बहुत कम रह गया है । उसने सावधान हो समाधि मरण के लिए तैयारी करली । चारों प्रकार के आहार का परित्यागकर आराधना की । देह को वोसिराकर अरिहन्त, सिद्ध, साधु और सर्वज्ञ प्रणीत धर्म का शरण स्वीकार किया।
अन्त समय में संसार के समस्त प्राणियों से अपने से ज्ञाताज्ञात हुए अपराधों की क्षमा याचना करते और अरिहन्त, भगवान को स्मरण करते हुए इस मानवजीवन यात्रा को समाप्तकर महत्तरा मलयासुन्दरी स्वर्गसिधार गयी । उसकी आत्मा अच्युत नामक बारहवें स्वर्ग में जाकर देवता के रूप में उत्पन्न हो गयी।
पाठक ! महाशय ! बस यहाँ ही महाबल मलयासुन्दरी महासती का जीवन चरित्र समाप्त होता है । यदि आपने इसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है तो इसमें से आपके जीवन को उन्नत बनाने वाली आपको बहुत सी शिक्षायें मिल सकती हैं। ग्रंथ पाठक के विचारानुसार ही या उसके ग्रहण करने की योग्यतानुसार ही उसे लाभप्रद हो सकता है । इस ग्रंथ में भी पाठकों को ज्ञेय, हेय और उपादेय तथा ग्रहण करने योग्य बहुत सी शिक्षायें भरी हैं। आप अपनी इच्छानुसार ग्रहण कर सकते हैं।
यह पुस्तक श्रीयुत तिलक विजयजी पंजाबी द्वारा अनुवादित पढ़ने में आयी और संस्था द्वारा प्रकाशित हुई। पाठक इसे पढ़कर लाभान्वित बने यही ।
- जयानंद
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