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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
मलयासुंदरी का उपदेश बिजली चमत्कार के तुल्य चपल समझो और जीवन को पानी के बुलबुले के सदृश जानो । पुत्र ! गुरुशिक्षा ग्रहण करने में चतुर तुम्हारे जैसे विवेकी पुरुष भी जब इस तरह का शोक करेंगे तो फिर धैर्य और विवेक गुण किस का आश्रय लेंगे?
इस प्रकार महत्तरा मलयासुन्दरी ने शोक निमग्न राजा शतबल को उपदेश देकर शोक सागर से पार किया । उसके सारगर्भित और युक्तिपूर्ण वचनों का शतबल पर इतना गहरा असर हुआ कि वह शोक रहित होकर धर्मध्यान में सावधान हो गया । महत्तरा साध्वी अपने कल्प की मर्यादानुसार जितने दिन सागर तिलक शहर में रही उतने दिन निरन्तर शतबल उसका धर्मोपदेश सुनता रहा । जिस जगह महाबल मुनि का निर्वाण हुआ था उस जगह शतबल राजा ने एक बड़ा विशाल मंदिर बनवाया और उसमें महाबल की मूर्ति स्थापन कर बड़ा भारी महोत्सव किया । अब महत्तरा मलयासुन्दरी राजा को धर्म में सावधान एवं स्थिर कर वहाँ से अन्यत्र विहार कर गयी ।
• निश्चय एवं व्यवहार की व्याख्याओं को गीतार्थ गुरु भगवंतों से
समझे बिना धर्मक्रियाएँ करना पूर्णरूप से फल की प्राति से वंचित रहना है। निश्चय एवं व्यवहार, ज्ञान एवं क्रिया एक - दूसरे के पूरक हैं । इन दोनों में एक - दूसरे को छोड़ना अर्थात् दो पटरी पर चलने वाली
गाड़ी को एक पटरी पर चलाने का प्रयत्न करना है । • निश्चयपूर्वक व्यवहार, ज्ञानपूर्वक क्रिया द्वारा ही आत्मोद्धार होता
- जयानंद
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