Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 258
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र मलयासुंदरी का उपदेश जरा मृत्यु आदि संसार के दुखों से सदा के लिए मुक्त हो गये हैं । शाश्वत सुख को पानेवाले पिता के लिए तुम शोक किसलिए करते हो ? यदि कभी किसी अपने प्रिय मित्र को महान् निधान की प्राप्ति हुई हो तो उस समय उस पर भक्ति या प्रेम का दम भरनेवाले मनुष्य को खुशी होगी या शोक ? बस वैसे ही तुम्हारे पिता को केवलज्ञानरूपी आत्मनिधान की प्राप्ति हुई है, इससे तुम्हें शोक नहीं बल्कि आनन्द होना चाहिए । जिस तरह किसी का कोई सगा – सम्बन्धी बहुत दिनों से कैदखाने में रहा हुआ हो और किसी समय उस कैदखाने से वह सदा के लिए मुक्त हो गया हो और यह समाचार उसके किसी इष्ट जन को मिला हो तो इससे वह खुशी होगा या शोकातुर ? पुत्र ! तुम्हारे पूज्य पिता भी संसार के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो गये हैं, अतः ऐसे समय तुम्हें शोक न करना चाहिए । निर्वाण समय के कष्ट को यादकर जो तुम्हें शोक होता है, इसमें भी विचार की शून्यता है । क्या संग्राम में विजय की इच्छावाले सुभट शत्रुओं के प्रहार सहन नहीं करते ? उसी प्रकार तुम्हारे पिता ने जीवन संग्राम में कर्म शत्रुओं के साथ युद्ध करते हुए शुद्धात्मा स्वभावरूपी विजय लक्ष्मी की इच्छा से जो उस समय कष्ट या उपसर्ग सहा है, वह उस विजय के सामने उनके मन कुछ हिसाब में नहीं है । हे वत्स ! तुम्हें जो इस बात के याद आने से दुःख होता है कि मैं पिता के चरण कमलों में नमस्कार न कर पाया । यह दुःख मानना भी उचित नहीं, क्योंकि तुम सदा से ही पितृभक्त हो, पिता की सेवा भक्ति तुमने हमेशा की है और आज भी तुम्हारा उनके प्रति वही भाव है, इसलिए पिता की साक्षात् आराधना करने से जो लाभ प्राप्त हो सकता है वह तुमने अपने परिणाम की विशुद्धता से प्राप्त कर लिया है । उनके प्रति इस प्रकार के भक्ति भाव द्वारा और भी तुम्हें अधिक लाभ होगा। अतः हे पुत्र ! संसार की विचित्रता का खयालकर तुझे पिताशोक में पड़कर अपने कर्तव्य को न भूलना चाहिए । शोक में निमग्न होकर मनुष्य अपना एवं दूसरों का रक्षण नहीं कर सकता । संसार को दुःखों का घर समझो ! संसार के सम्बन्धों को स्वप्न के समान अनित्य समझो, लक्ष्मी को 241

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