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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
दुःखों का अन्त
यह सुन जनता में खलबली मच गयी । वे एक दूसरे की तरफ इशारा कर कहने लगे । देखो, इतना होने पर भी राजा अपना खराब विचार नहीं छोड़ता । मालूम होता है इस चमत्कारी पुरुष को क्रोधित कर राजा इसीसे अपना सर्वनाश करायेगा । सिद्ध पुरुष की सहनशीलता और राजा की निर्लज्जता पराकाष्ठा तक पहुँच चुकी है । क्या अभी तक भी इसके पापों का घड़ा नहीं भरा, ? महाबलकुमार के मन में भी विचार परिवर्तन हो गया था । वह अब दुःखित होकर पापी को किसी भी तरह उसके पापों का प्रायश्चित्त देना चाहता था । अतः व्यंतर देव को स्मरणकर साहस पूर्वक वह उस अग्नि में प्रवेशकर गया । इस समय राजा को बड़ा संतोष हुआ, परन्तु प्रजा में अत्यंत शोक छा गया । तथापि वह हर्ष शोक बहुत देर तक न टिक सका । थोड़ी ही देर में सिद्धराज अग्नि से बाहर निकल आया । वह घोड़े पर सवार था । उसके चेहरे पर इस समय अधिक तेज झलक रहा था । दिव्य वस्त्र और सुन्दर कीमती अलंकारो से उसका शरीर सुशोभित था । वह आते ही आश्चर्य पाये हुए लोगों के सामने बोला - महाराज ! और अन्य सज्जनो ! इस समय जो अग्नि प्रज्वलित हो रहा है यह बहुत ही पवित्र है । एवं जिस जगह यह दिव्य अग्नि प्रगट हुआ है वह जगह भी मनोवांच्छित फल के देनेवाली है । उस जगह जाने से मेरे जैसी दिव्य स्थिति प्राप्त होती है। और एक सुन्दर घोड़ा मिलता है । अब से हम दोनों को किसी समय भी रोग, जरा, या मृत्यु पराभव न कर सकेगी। यदि इस समय कोई भी मनुष्य अपना इच्छित कार्य मन में धारण कर इस अग्नि में प्रवेश करेगा तो वह मेरे ही समान दिव्य रूप धारी होकर निकलेगा ।
सिद्धराज का बना हुआ प्रत्यक्ष दिव्य रूप देख वैसा ही बनने के अर्थी और मनोवांच्छित सुख के इच्छुक राजा आदि अनेक पुरुष अग्नि में प्रवेश करने के लिए तैयार हो गये । सिद्धराज बोला - सज्जनो ! आप जरा - सी देर धीरज रख्खें, यह दिव्य अग्नि सचमुच ही तीर्थभूमि सरीखा है इसलिए मैं पहले इसकी पूजा कर लूँ यों कहकर सिद्धराज ने घी प्रमुख अनेक द्रव्य पदार्थ मँगवायें और मंत्रोच्चार पूर्वक मंद पड़े हुए अग्नि में उन पदार्थो का होमकर उसे विशेष
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