Book Title: Mahabal Malayasundari Charitra
Author(s): Tilakvijay, Jayanandsuri
Publisher: Ek Sadgruhastha

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Page 228
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र पूर्वभव वृत्तान्त इस धर्म देशना को सुनकर अनेक मनुष्यों को बोध प्राप्त हुआ। महात्मा के वचनों से राजकुटुम्ब को बड़ी शान्ति प्राप्त हुई । ज्ञान पिपासु और धर्म जिज्ञासु मनुष्यों के आनन्द का पार न रहा। सारी सभा में शान्ति का साम्राज्य छा गया । समय पाकर राजा शूरपाल हाथ जोड़कर बोला - ज्ञान दिवाकर भगवन् ! मेरे मन में एक आश्चर्यजनक शंका है, कृपाकर आप उत्तर देकर कृतार्थ करें। प्रभो ! समुद्र में पड़ी मलयासुन्दरी को उस मगर मच्छ ने कुछ भी इजा न पहुँचाकर इसे सुखपूर्वक समुद्र तट पर क्यों कर ला उतारी ? उसमें ऐसा कौन-सा ज्ञान था ? जिससे वह इसे समुद्रकिनारे पर उतारकर बार - बार प्रेम भरी नजर से इसकी ओर देखता हुआ वापिस चला गया। केवली महात्मा - राजन् ! मलयासुन्दरी की धायमाता वेगवती अन्त समय में आर्त ध्यान से मरकर इसी समुद्र में मगरमच्छ के जन्म में पैदा हुई है। जिस समय मलयासुन्दरी भारंडपक्षी के पंजों से निकलकर समुद्र में पड़ी उस समय दैववशात् वह मगरमच्छ उसी जगह पानी पर तैरता था । पुण्य के योग से मलया उसकी पीठ पर आ पड़ी । मलयासुन्दरी उस वक्त अपना अन्तिम समय समझकर परमेष्ठी मंत्र का उच्चारण कर रही थी । इसके शब्द उसके कान में पड़ते ही उसने इसकी ओर देखा । मलया को देख ताजे संस्कार होने से उसे अपने पूर्वभव का जाति स्मरण ज्ञान हो गया । उस ज्ञान के कारण उसने मलयासुन्दरी को पहचान लिया । इससे वह विचारने लगी कि - अहो ! राजमहलों में रहनेवाली इस मेरी पुत्री पर अवश्य कोई भयंकर संकट पड़ा है जिससे यह ऐसे अगाध समुद्र में आ पड़ी हैं। मैं ऐसी तिर्यंच की अधम स्थिति में इसे किस प्रकार सहायता करूँ ? जलचर पशु की गति में पैदा होने के कारण मैं इस निराधार लड़की को अन्य किसी भी तरह की सहाय नहीं कर सकती तथापि इसे अपनी पीठ पर बैठी हुई को किसी मनुष्य की वसतीवाले स्थल प्रदेश तक तो पहुँचा सकती हूँ। उसके बाद यह किसी भी प्रकार से अपने सगे - सम्बन्धियों से जा मिलेगी। ___ पूर्वोक्त विचारकर उस मगरमच्छ ने अगाध समुद्र से सुखपूर्वक मलयासुन्दरी को समुद्र तट पर ला छोड़ा । पुत्रीपन के स्नेह से गर्दन पीछेकर 211

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