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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
पूर्वभव वृत्तान्त धर्म को मुक्ति मंदिर की तरफ ले जाते हैं । केवल व्यवहार से ही धारण किये ये व्रत आत्मा को देवलोकादि का सुख प्राप्त कराते हैं। ___महानुभावो ! आत्मीय सुख प्राप्ति का उद्देश्य किये बिना सांसारिक सुख की लालसा में अमूल्य जीवन की कदर्थना करना मूर्खता है, क्या यह कीमती जीवन विषय वासनाओं के प्रवाह में बहा देने के लिए प्राप्त हुआ है ? या उस क्षणिक सुख के साधनों को एकत्रित करने के लिए ही दुर्लभ मानव जन्म पाया है जो बादल की छाया के समान कुछ देर आकर नष्ट हो जाता है ? संसार परिवर्तन शील है, उसमें मनुष्य अपनी जीवन नौका को वहन करता है । यदि वह पतवार को छोड़ हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाय तो वह नौका काल के प्रवाह में बह जाय । परिवर्तनशील संसार में रहनेवाले हर एक समझदार मनुष्य को अपने बहुमूल्य मानव जीवन का लक्ष्य कायमकर सदैव उसकी ओर ध्यान रखना चाहिए । बहुत से मनुष्य आत्मीय सुख की ओर दुर्लक्ष्यकर शारीरिक सुख को अधिक महत्त्व देते हैं । वे सवार की अपेक्षा घोड़े को ही कीमती समझते
राजन् ! परम सुख प्राप्त करने का मुख्य साधन शरीर अस्थिर है । सुख की भ्रांति करानेवाली लक्ष्मी विजली के चमत्कार की तरह चपल है । संयोग वियोग वाले हैं । प्राणीमात्र के सिर पर मृत्यु का नाच हो रहा है, न जाने किस समय और किस पर उसकी तान टूट जाय । संसार के तमाम सुख स्वप्न के सरीखे हैं । संकट के समय धर्म के सिवा कोई भी सहाय नहीं कर सकता । देव देवेन्द्र, राजा रंक, स्त्री - पुरुष और बाल वृद्ध आदि सबको एक समय मृत्यु का ग्रास बनना है । इसलिए हे भव्यात्माओ ! आलस्य की घोर निद्रा को त्यागो । सावधान होकर परम शान्ति के मार्ग में प्रयत्न करो । निरन्तर सुख की इच्छावाले मनुष्य को कभी न कभी अवश्य ही इस मार्ग का आश्रय लेना पड़ेगा। अमूल्य जीवन का एक भी क्षण निरर्थक न जाने दो । ये क्षण बड़े ही कीमती हैं। विपुल संपत्ति खर्च ने पर भी गया क्षण हाथ नहीं आता और पुण्योदय से प्राप्त हुई यह सर्व सामग्री बार - बार नहीं मिलती।
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