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श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र
पूर्वभव वृत्तान्त गुरुमहाराज का वचन स्वीकारकर उन्हें भक्तिभाव से नमस्कारकर दोनों राजा शहर में आये । महाबल वहाँ पर ही होने के कारण शूरपाल राजा को राज्य की व्यवस्था करने के लिए पृथ्वीस्थानपुर जाने की आवश्यकता न पड़ी। उसने वहाँ पर ही रहकर महाबल को पृथ्वीस्थानपुर का राज्यभार सुपूर्द कर दिया और संसार से निश्चन्त हो सहकुटुम्ब दीक्षा लेने को तैयार हो गया। विचारक धर्मार्थी मनुष्य वस्तु के सत्य स्वरूप को समझने के बाद उसे ग्रहण करने और असत्य समझने पर परित्याग करने में कदापि विलम्ब नहीं करते ।।
संयम ग्रहण करने की सूरपाल राजा की अति उत्सुकता देखकर वीरधवल राजा ने भी चंद्रावती न जाकर वहाँ पर ही अपने पुत्र मलयकेतु को बुला भेजा और उसके आ जाने पर वीरधवल राजा ने समस्त राज्य कार्यभार उसे सौंप दिया । बस अब शेष कुछ न करना था। दोनों राजाओं ने वहाँ पर ही अपनी रानियों सहित ज्ञानी गुरुदेव महाराज के पास जाकर संयम ग्रहण कर लिया। गुरु महाराज भी कुछ दिन वहाँ रहकर उन दोनों राजर्षि शिष्यों को साथ ले अन्यत्र विहार कर गये । कितनेक समय तक संयम पालकर और दुष्कर तपाचरणकर अन्त में आराधना पूर्वक कालकर के वे दोनों राजर्षि स्वर्ग सिधार गये । वहाँ से आयु पूर्णकर महाविदेह में जन्म लेकर पुनः संयम द्वारा कर्मक्षयकर के मोक्ष प्राप्त करेंगे।
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