________________
श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र पूर्वभव वृत्तान्त ली और फिर उसकी खूब कदर्थना की । नौकर को असत्य और कटु वचन बोलकर रुद्रा ने रौद्र - भयानक कर्म उपार्जन कर लिया ।
पूर्व भव की अपनी मालकिन रुद्रा को कनकवती के रूप में देख अपने ऊपर तिरस्कारपूर्ण बोले हुए दुर्वचन यादकर व्यन्तर जाति में पैदा हुए सुन्दर के जीव ने चोर के मृतक शरीर में प्रवेश कर कनकवती की नाक काट ली ।
मदन का पूर्वजन्म में सुन्दरी पर जो अनुराग था वह प्रबल होने के कारण इस भव में भी मलयासुन्दरी को देख मदन के जीव कन्दर्प के हृदय में उस पर आसक्ति हुई थी । मनुष्य के हृदय में जो पहले भवों के संस्कार के कारण वासनायें पैदा होती है वे विना भोग के या प्रबल ज्ञान की सहायता के सिवा कभी शान्त नहीं होती । पहले भव में मलयासुन्दरी और महाबल ने बारह व्रत अंगीकारपूर्वक गृहस्थ धर्म की आराधना की थी और मुनि को दान दिया था । उस शुभ कर्म के प्रभाव से इस जन्म में इन्होंने उत्तम कुल में पैदा होकर सुख की सामग्री आदि प्राप्त की है। मलयासुन्दरी ने प्रिय सुन्दरी के भव आक्रोशपूर्वक तिरस्कार के वचन बोलते हुए कहा था कि "अरे ! पाखण्डी मुनि ! तेरे सगे सम्बन्धियों से तेरा सदैव वियोग हो, तूं राक्षस के समान भयानक मालूम होता है" एवं क्रोधित होकर मुनि पर तीन दफा पत्थरों का प्रहार किया था । महाबल के जीव प्रियमित्र ने भी मौन रहकर अपनी पत्नी के कृत्य की अनुमोदना की थी, उस अकृत्य के द्वारा इन दोनों ने घोर पातक उपार्जन किया था । परन्तु बाद में अपनी भूल मालूम होने से इन्होंने खूब पश्चात्ताप किया और मुनि के पास जाकर अपने अपराध की क्षमा याचना करते हुए बहुत - सा पाप कर्म क्षय कर दिया था । किन्तु क्षय करने पर भी जो दुष्कर्म बाकी रह गया था, उसके प्रभाव से इस भव में इन्हें अपने सगे सम्बन्धियों से तीन दफा संकट पूर्ण वियोग सहना पड़ा है और मलयासुन्दरी को कारुक - रँगरेज तथा कंदर्प की अधीनता में अनेक प्रहार सहने पड़े हैं। मुनि को राक्षस कहने के कर्म परिणाम में निर्दोष होते हुए भी मलयासुन्दरी को वैर सम्बन्ध से कनकवती की ओर से राक्षसी का कलंक प्राप्त हुआ । इस प्रकार राजकुल में पैदा होकर भी इन दोनों ने अपने पहले जन्म में किये हुए पापकर्मों के कारण यहाँ पर ऐसे घोर दुःख प्राप्त किये हैं । प्रिय सुन्दरी ने कुपित होकर मुनि के हाथ में से उसका रजोहरण छीन
1
224